Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2024

इंटरानेट एवं इंटरनेट सेवाओ में अंतर Intarnet Aur Internet main antar

इंटरानेट एवं इंटरनेट सेवाओ में अंतर इंटरानेट संचार माध्यम में कंप्यूटर्स के प्रयोग ने सूचना जगत में क्रांति ला दी है व्यावसायिक जगत के लिए तो कंप्यूटर रीड की हड्डी का कार्य कर रहा है। दूरी चाहे कुछ कदमों की हो अथवा हजारों किलोमीटर की, कंप्यूटर द्वारा सूचनाएं तीव्रता से प्रेषित व प्राप्त की जा सकती है। कंप्यूटर नेटवर्क आपस में जुड़े हुए विभिन्न कंप्यूटर्स का एक जल होता ह। इसमें उपस्थित कंप्यूटर भौगोलिक रूप से तो पृथक होते हैं परंतु किसी न किसी संचार माध्यम द्वारा जुड़े होते हैं तथा स्वयं में स्वायत्त भी होते हैं। नेटवर्क के अंतर्गत कंप्यूटर एक दूसरे से जानकारी का आदान-प्रदान करने के अतिरिक्त आपस में अन्य हार्डवेयर; जैसे- प्रिंटर, मॉडेम आदि; का भी साझा उपयोग करते हैं। दो या दो से अधिक कंप्यूटर्स को अन्य उपकरणों के साथ आपस में जोड़ना नेटवर्क कहलाता है तथा इस प्रकार से कंप्यूटर को जोड़कर उपलब्ध साधनों के प्रयोग करने की विधि को ' इंटरानेट' कहते हैं। भौगोलिक दूरी के आधार पर कंप्यूटर के इंटरानेट का वर्गीकरण किया जाता है। यह वर्गीकरण निम्नलिखित है - (१) लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) सीमित...

एडगर डेल का अनुभव शंकु Adler ka Anubhav shanku

एडगर डेल का अनुभव शंकु   अनुभव शंकु Anubhav shanku बहु इंद्रिय अनुदेशन के लिए एडगर डेल ने दृश्य-श्रव्य साधनों की सहायता से अनुभवों के आधार पर एक विशेष प्रकार का वर्गीकरण प्रस्तुत किया जिसे अनुभव के त्रिकोण की संज्ञा दी। सहायक सामग्री से जितने भी प्रकार के अनुभव व्यक्ति को प्राप्त होते हैं तथा वे सहायक साधन जो इन अनुभवों को प्रदान करते हैं उन्हें विभिन्न श्रेणियां में रखने का प्रयास किया गया है।  इन श्रेणियों को एक त्रिकोण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस त्रिकोण में सम्मिलित अनुभवों में प्रत्यक्ष अनुभवों से लेकर अमूर्त चिंतन तक को शामिल किया गया है। इन अनुभवों के पर आधारित वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य बहू-इंद्रिय अनुदेशन प्रदान करता है । इस वर्गीकरण के पीछे डेल की मुख्य धारणा यह रही है कि शिक्षण कार्य से विद्यार्थियों को अनुभव प्रदान करने के लिए, ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों की संख्या में वृद्धि करने से विद्यार्थियों के अनुभव की गहनता बढ़ती चली जाती है।  बहुइंद्रियों को क्रियाशील करने पर विद्यार्थियों को मूल अनुभव या आंतरिक अनुभव प्राप्त कराया जा सकता ...

शिक्षण की मस्तिष्क उद्देलन व्यूह रचना mastishk udvelan vyuh rachna

  शिक्षण की मस्तिष्क उद्देलन व्यूह रचना मस्तिष्क हलचल या उद्वेलन का शाब्दिक अर्थ है मस्तिष्क को उद्वेलित करना, उसमें उथल-पुथल मचाना, यानी विचारों की ऐसी आंधी लाना जिसमें किसी वस्तु, व्यक्ति,प्रक्रिया या संप्रत्यय के बारे में अनगिनत विचार तथा सोच एक साथ अनायास ही उनकी अच्छाई- बुराई, औचित्य अनौचित्य की परवाह किए बिना मस्तिष्क पटल पर उभर जाएं।  व्यूह रचना के भी रूप में इसे प्रतिष्ठित करने का श्रेय ए. एफ. ओजबोर्न को जाता है जिन्होंने अपनी रचना के द्वारा 1963 में इस सबके सामने रखा। यह व्यूह रचना ऐसी व्यूह रचना है जिसमें ऐसे साधन प्रयोग किए जाते हैं जो छात्रों के मस्तिष्क में ज्ञान प्राप्ति तथा चिंतन के प्रति उद्देलन मचा देते हैं। इसमें छात्रों के समक्ष एक समस्या प्रस्तुत की जाती है जिस पर सभी छात्र स्वतंत्रतापूर्वक विचार करते हैं, वार्तालाप तथा वाद - विवाद करते हैं।  शिक्षक सभी विचारों को श्यामपट्ट पर लिखता चला जाता है। वाद- विवाद और चिंतन तथा वार्तालाप करते-करते एक ऐसा बिंदु या अवस्था आ जाती है जब छात्र एकदम समस्या को हल कर देते हैं। यह व्यूह रचना विशेष रूप से उच्च संज्ञ...

प्रबंधन का अर्थ,परिभाषा, व्यवस्था के सोपान एवं विशेषताएं Prabandhan ka Arth evam Paribhasha

  प्रबंधन का अर्थ एवं परिभाषा 'प्रबंधन' का अर्थ  "साधनों एवं स्रोतों को निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग करने के स्वरूप को व्यवस्था कहते हैं।" आई. के. डेविस के अनुसार, "शिक्षण एक उच्चतम व्यावसायिक प्रक्रिया है। आई. के. डेविस ने ही शिक्षा के क्षेत्र में इस नए प्रत्यय शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को जन्म दिया।" स्कॉट के अनुसार व्यवस्था का अंतिम उद्देश्य विवाद को कम करना है। व्यवस्था के द्वारा व्यक्ति के महत्व को काम करने का प्रयास किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि व्यवस्था के द्वारा अनिश्चितता को काम किया जा सकता है और निश्चितता एवं स्थायित्व में वृद्धि की जाती है। व्यवस्था के अंतर्गत निम्नलिखित युक्तियों को प्रयोग में लाया जाता है- (a) कार्य विश्लेषण  (b) अधिकारों और उत्तरदायित्वों को उत्तम क्रम में तय किया जाता है।  (c) प्रयासों और स्रोतों तथा साधनों में समन्वय में स्थापित किया जाता है। 'प्रबंधन' निम्नलिखित मानव- व्यवस्था की धारणाओं पर आधारित है- (१) व्यवस्था का परंपरागत सिद्धांत: कार्य केंद्रित व्यवस्था के सदस्यों में कार्य...

बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष के उद्देश्य Bloom Ke Gyanatmak Bhavatmak Paksh

 बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक पक्ष  इस पक्ष का इस पक्ष का विकास प्रोफेसर ब्लूम ने 1956 में किया। इसका संबंध प्रमुख रूप से सूचनाओं, ज्ञान तथा तथ्यों का ज्ञान एवं विषय वस्तु के विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन आदि बौद्धिक क्रियाओ से होता है। बौद्धिक प्रक्रियाएं बालक को अधिक अनुभव प्रदान कर अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की ओर ले जाती है। इस पक्ष के उपवर्गीकरण इस प्रकार है _ ज्ञान  बोध  प्रयोग  विश्लेषण संश्लेषण  मूल्यांकन ज्ञानात्मक उद्देश्य इस बात पर बल देते हैं कि विद्यार्थियों को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि ज्ञानात्मक पक्ष से संबंधित व्यवहार में प्रत्यय स्मरण तथा पहचान की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया क्रियाशील रहती है इसलिए स्कूल में पढ़ाई जाने वाले विभिन्न विषयों के द्वारा इस पक्ष को अधिक से अधिक विकसित करने का प्रयास किया जाता है इस पक्ष से संबंधित विभिन्न उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है- १ ज्ञान - ज्ञान उद्देश्य का संबंध शब्दों, तथ्यों, नियमों, सूचनाओं एवं सिद्धांतों की सहायता से विद्यार्थियों की प्रत्ययस्मरण तथा पहचान संबंधी क...

बहु इंद्रिय अनुदेशन का अर्थ व परिभाषा Bahu indriya anudeshan ka Arth aur paribhasha

बहु इंद्रिय अनुदेशन का अर्थ 'बहु इंद्रिय' अनुदेशन शिक्षा में नया प्रत्यय है, इसका विकास एडगर्डेल ने किया। यह इसकी शब्दावली से ही प्रकट होता है कि वह अनुदेशन जिसमें दो से अधिक इंद्रियां क्रियाशील हो, अनुबंधन शिक्षण का ही एक प्रारूप है। शिक्षण में भी अनुदेशन निहित होता है। शिक्षक की क्रिया अनुदेशन से आरंभ होती है। अनुदेशन से ज्ञान के उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। अनुदेशन की परिभाषा :- अनुदेशन से सीखने की परिस्थितियों उत्पन्न की जाती हैं जिससे छात्र अनुभव करते हैं और उनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है। "अनुदेशन क्रिया तथा भाव की एक प्रणाली है जिससे अधिगम होता है" यदि अधिगम को समझ लिया जाए तब अनुदेशन अधिक स्पष्ट हो जाता है । क्रियाओं तथा अनुभवों से जो व्यवहार परिवर्तन होता है उसे अधिगम कहते हैं। यदि व्यवहार परिवर्तन संवेगों, अभिप्रेरणा या परिपक्वता से होता है तो उसे अधिगम नहीं कहते हैं। अनुदेशन का लक्ष्य अधिगम परिस्थितियों उत्पन्न करना है जिससे छात्रों को कुछ करना हो तथा कुछ अनुभव हो जिसका परिणाम अधिगम होता है। एडगार्डेल ने आंतरिक अनुभव का उपयोग बहूइंद्रिय अनुदे...