बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक पक्ष
इस पक्ष का इस पक्ष का विकास प्रोफेसर ब्लूम ने 1956 में किया। इसका संबंध प्रमुख रूप से सूचनाओं, ज्ञान तथा तथ्यों का ज्ञान एवं विषय वस्तु के विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन आदि बौद्धिक क्रियाओ से होता है। बौद्धिक प्रक्रियाएं बालक को अधिक अनुभव प्रदान कर अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की ओर ले जाती है। इस पक्ष के उपवर्गीकरण इस प्रकार है _
- ज्ञान
- बोध
- प्रयोग
- विश्लेषण
- संश्लेषण
- मूल्यांकन
- ज्ञानात्मक उद्देश्य इस बात पर बल देते हैं कि विद्यार्थियों को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि ज्ञानात्मक पक्ष से संबंधित व्यवहार में प्रत्यय स्मरण तथा पहचान की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया क्रियाशील रहती है इसलिए स्कूल में पढ़ाई जाने वाले विभिन्न विषयों के द्वारा इस पक्ष को अधिक से अधिक विकसित करने का प्रयास किया जाता है इस पक्ष से संबंधित विभिन्न उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-
१ ज्ञान -
- ज्ञान उद्देश्य का संबंध शब्दों, तथ्यों, नियमों, सूचनाओं एवं सिद्धांतों की सहायता से विद्यार्थियों की प्रत्ययस्मरण तथा पहचान संबंधी क्रियाओ का विकास करने से होता है। इस उद्देश्य के द्वारा विद्यार्थियों को परंपराओं, नियमों, सिद्धांतों, मानदंडों आदि का प्रत्यास्मरण एवं पहचान करने के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण भी किया जाता है।
२ बोध-
- बोध का अर्थ है नवीन ज्ञान का विद्यार्थी की समझ में आना। दूसरे शब्दों में, बोध के अंतर्गत ज्ञान निहित होता है। जिस जिस पाठ्यवस्तु का विद्यार्थियों को बोध होता है, अर्थात जिस पाठ्यवस्तु के विषय में उनकी प्रत्यय स्मरण तथा पहचान की क्षमताएं विकसित हो जाती हैं, उसके संबंध में वे अनुवाद व्याख्या तथा उल्लेख आदि अनेक क्रियाएं बोध उद्देश्य के आधार पर कर सकते हैं।
३ प्रयोग
प्रयोग ज्ञान और बौद्ध के पश्चात प्रयोग की ओर बढ़ा जाता है। प्रयोग उद्देश्य के भी तीन स्तर हैं
- १. नियमों तथा सिद्धांतों का सामान्य कारण
- २. विद्यार्थियों की कमजोरी का निदान करना
- ३. विद्यार्थियों द्वारा पाठ्यवस्तु अथवा शब्दों
- ४. नियमों को अपने कथनों में प्रयोग करना।
४ विश्लेषण-
- ज्ञान, बोध तथा प्रयोग के पश्चात विश्लेषण की ओर बढ़ा जाता है। दूसरे शब्दों में, विश्लेषण तब ही संभव है जब ज्ञान, बोध तथा प्रयोग उद्देश्य प्राप्त हो गए हो। विश्लेषण उद्देश्य के अंतर्गत पाठ्यवस्तु को तत्वों में विभाजित करके उनमें परस्पर संबंध स्थापित किया जाता है।
५ संश्लेषण -
- संश्लेषण को क्रियात्मक उद्देश्य की संज्ञा दी जाती है ।इसका कारण यह है कि इसके अंतर्गत विश्लेषण द्वारा ज्ञात किए गए तत्वों को एकत्रित करके पूर्ण रूप प्रदान करते हुए एक नया ढांचा तैयार किया जाता है जिससे विद्यार्थियों की सृजनात्मक क्षमताओं का विकास होता है।
६ मूल्यांकन-
मूल्यांकन ज्ञानात्मक पक्ष का सर्वोच्च स्तर है। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धांतों तथा तथ्यों के संबंध में आलोचनात्मक निर्णय लेकर परीक्षा अथवा अन्य प्रकार के मापदंडों द्वारा यह मालूम किया जाता है कि -
- शिक्षण के निर्धारित उद्देश्य प्राप्त हुए अथवा नहीं,
- विद्यार्थियों में कक्षा के अंदर जो सीखने के अनुभव प्रदान किए गए, वे प्रभावोत्पादक रहे अथवा नहीं, तथा
- शिक्षण के उद्देश्यों को कितने अच्छे ढंग से प्राप्त किया गया है।
ब्लूम के अनुसार भावात्मक पक्ष के उद्देश्य
- भावात्मक पक्ष के उद्देश्य का संबंध विद्यार्थियों की रुचियों, संवेगों तथा मनोवृतियों एवं मूल्यों से होता है। भावात्मक पक्ष को विकसित करना इतना सरल कार्य नहीं होता।
- शिक्षक का कर्तव्य है कि वह भावात्मक उद्देश्य द्वारा विद्यार्थियों के भावात्मक पक्ष अर्थात उनकी रुचियां संवेगों मनोवृतियों तथा स्थाई भावों का अधिक से अधिक विकास करें ब्लूम ने निम्नलिखित भावात्मक उद्देश्य बताए हैं-
१ ग्रहण करना-
- १ क्रिया की जागरूकता
- २ क्रिया प्राप्त करने की इच्छा
- ३ क्रिया का नियंत्रित ध्यान
२ अनुक्रिया -
- १ अनुक्रिया में सहमति
- २अनुक्रिया की इच्छा
- ३ अनुक्रिया में संतोष
३अनुमूल्यांकन-
४.अनुमूल्यन
५ व्यवस्था -
- जब विद्यार्थियों के सामने ऐसी परिस्थितियां बदलती हैं कि उन मूल्यों में से उन्हें एक से अधिक मूल्य उपयुक्त होता है तो वह विचार करते हुए ग्रहण किए गए मूल्यों की व्यवस्था क्रमानुसार करने लगते हैं।
६ मूल्य-समूह का विशेषीकरण -
- मूल समूह का विशेषीकरण वह स्तर है जिसके अंतर्गत विद्यार्थी मध्यक्रम में आंतरिकता आ जाती है। उसके दो स्तर हैं-
Nice answer
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