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शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें |
शैक्षिक तकनीकी का अर्थ
शैक्षिक तकनीकी कोई शिक्षण- पद्धति नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जिसके आधार पर शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों की अधिकतम प्राप्ति के लिए विभिन्न व्यूह रचनाओं का विकास किया जा सकता है। अब शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित हो जाते हैं तो उनको प्राप्त करने के लिए शैक्षिक तकनीकी अस्तित्व में आती है।
सामान्य भाषा में ' तकनीकी' शब्द का अर्थ ' शिल्प ' अथवा ' कला विज्ञान' से है। तकनीकी शब्द को ग्रीक भाषा में ' टेक्निकोज' शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है ' एक कला ' तकनीकी का संबंध कौशल तथा दक्षता से है।।
कुछ वर्ष पहले शैक्षिक तकनीकी को दृश्य- श्रव्य सामग्री से और कक्षा में अध्यापन सामग्री से संबंधित माना जाता था, लेकिन शैक्षिक तकनीकी और श्रव्य - दृश्य सामग्री एक जैसे नहीं है।
शैक्षिक तकनीकी की परिभाषायें
शैक्षिक तकनीकी के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए विभिन्न परिभाषायें दी गई है जिनका विवरण अग्र प्रकार है-
एस.एस. कुलकर्णी के अनुसार, "शैक्षिक तकनीकी को शिक्षण प्रक्रिया में प्रयोग किए जाने वाले विज्ञान और तकनीकी के नए नियमों और विज्ञान तथा तकनीकी की नई खोजों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।"
प्रोफेसर जी. ओ. एम. लीथ के अनुसार, " शैक्षिक तकनीकी का अर्थ वैज्ञानिक ज्ञान को सीखने की दशा में प्रयोग द्वारा शिक्षण तथा प्रशिक्षण की कुशलता में वृद्धि करना तथा उसे प्रभावशाली बनाना है।"
रोबर्ट ए. कॉक्स के अनुसार,"मनुष्य की सीखने की दशाओं में वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रयोग शैक्षिक तकनीकी कहलाता है।"
शिब के. मित्रा के अनुसार,
" शैक्षिक तकनीकी का संबंध उन वैज्ञानिक तकनीक और विधियो से हैं, जिनके द्वारा शैक्षिक लक्ष्यो को प्राप्त किया जा सके।"
अनविन की परिभाषा इस प्रकार है, "शैक्षिक तकनीकी का संबंध शिक्षा और प्रशिक्षण की आवश्यकताओं के लिए आधुनिक कौशलों और तकनीकों के प्रयोग से है जिसमें संचार व्यवस्था, सभी तरीकों और वातावरण के नियंत्रण, जो सीखने को प्रभावित करते हैं, द्वारा सीखने को प्रोत्साहन देना सम्मिलित है।"
जॉन. पी. डेसिको के अनुसार,
"शैक्षिक तकनीकी प्रयोगात्मक व व्यावहारिक शिक्षण समस्याओं को समझने तथा उनका समाधान करने के लिए सीखने में मनोविज्ञान का विस्तृत प्रयोग है।"
बी .एल .शर्मा के अनुसार,
"शैक्षिक तकनीकी का संबंध शिक्षण की आधुनिक विधियों, तकनीकों के प्रयोग एवं मनुष्य की सीखने की प्रक्रिया के लिए वैज्ञानिक वातावरण निर्मित करने से है।"
शैक्षिक तकनीकी की उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन और विश्लेषण से हमें यह ज्ञात होता है कि -
- (१) शैक्षिक तकनीकी का आधार विज्ञान है।
- (२) शैक्षिक तकनीकी निरंतर विकासशील, प्रगतिशील तथा अत्यंत प्रभावोत्पादक विधि है।
- (३) शैक्षिक तकनीकी शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीकी के प्रभाव का ध्यान करती है। दूसरे शब्दों में शैक्षिक तकनीकी के अंतर्गत विज्ञान तथा तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। अतः यह विज्ञान का व्यावहारिक रूप है।
- (४) शैक्षिक तकनीकी में व्यवहारिक पक्ष को महत्व दिया जाता है।
- (५) इसका उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया में विकास करना है।
- (६) यह मनोविज्ञान, इंजीनियरिंग आदि विज्ञानों से सहायता लेता है।
- (७) इसमें क्रमबद्ध उपागम को प्रधानता दी जाती है।
- (८) शैक्षिक तकनीकी के द्वारा ही शिक्षा के क्षेत्र में अभिक्रमित अध्ययन, सूक्ष्म - शिक्षण, सिमूलेटिड शिक्षण, अतः प्रक्रिया विश्लेषण, वीडियोटेप, टेपरिकॉर्डर, प्रोजेक्टर तथा कंप्यूटर आदि नवीन अवधारणाओं का जन्म हुआ।
- (९) दृश्य- श्रव्य सहायक सामग्री को भी शैक्षिक तकनीकी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इनका संबंध केवल प्रक्रिया पक्ष से हैं, आदा तथा प्रदा पक्षों से नहीं। यदि सहायक सामग्री का प्रयोग शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाएगा तो इसे शैक्षिक तकनीकी की संज्ञा दी जा सकती है।
- (१०) शैक्षिक तकनीकी स्कूल को एक प्रणाली अथवा कम के रूप में मानती है। इस क्रम में स्कूल का भवन, कक्ष, फर्नीचर तथा शिक्षक आदि तो लागत अथवा अदा का कार्य करते हैं। विभिन्न विधियों, प्रविधियां तथा युक्तियो एवं दृश्य - श्रव्य सहायक सामग्री के प्रयोग द्वारा कक्षा शिक्षण एवं परीक्षा आदि प्रक्रिया के रूप में कार्य करते हैं। अंत में उत्पादन अथवा प्रदा विद्यार्थियों की योग्यता के रूप में होता है।
- (११) अभियंत्र तकनीकी शैक्षिक तकनीकी नहीं है। अभियंत्रण तकनीकी ने रेडियो टेपरिकॉर्डर वीडियोटेप तथा टेलीविजन का निर्माण अवश्य किया है, जिनका प्रयोग शिक्षण में दृश्य - श्रव्य सामग्री के रूप में होता है। लेकिन अभियंत्रण तकनीकी और शैक्षिक तकनीकी भिन्न है। इस शिक्षा में केवल हार्डवेयर अथवा मशीन उपागम के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
- (१२) शैक्षिक तकनीकी द्वारा शिक्षक की सभी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।
इसका प्रयोग तो केवल शिक्षण तथा अनुदेशन प्रणाली में ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
शैक्षिक तकनीकी की आवश्यकता
आधुनिक युग में शैक्षिक तकनीकी की आवश्यकता निरंतर बढ़ती जा रही है। विश्व का प्रत्येक देश इसे अपना रहा है। कोठारी कमीशन 1966 में अपनी एक टिप्पणी में कहां है-" पिछले कुछ वर्षों में भारत के विद्यालयों में कक्षा - अध्ययन को फिर से जीवनदान देने या उसे अनुप्राणित करने की प्रविधियों पर काफी ध्यान दिया गया है।
बुनियादी शिक्षा का पहला उद्देश्य प्राइमरी स्कूलों के समस्त जीवन और कार्य- कलापों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना एवं बच्चों के मन, शरीर और आत्मा का सर्वोत्तम तथा सर्वाधिक विकास करना था।" इस दृष्टि से भी शैक्षिक तकनीकी का अपना महत्व स्वयं सिद्ध है।
अधिगम सिद्धांतों की जगह शिक्षण - सिद्धांतों को उचित महत्व प्रदान करने वाली विषय वस्तु शैक्षिक तकनीकी ही है शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है -
(१) शिक्षक के लिए आवश्यकता
- शैक्षिक तकनीकी पर अधिकार रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के व्यवहारों का अध्ययन कर सकता है, समझ सकता है, और उन्हें वांछित सुधार लाने के प्रयत्न कर सकता है। शिक्षक को विषय वस्तु के साथ-साथ व्यवहार, अध्ययन और व्यवहार सुधार की प्रणालियों का ज्ञान भी होना चाहिए। शैक्षिक तकनीकी इस क्षेत्र में शिक्षक को समर्थ बनाती है।
- शैक्षिक तकनीकी शिक्षक को शिक्षण उपागमाें, शिक्षण व्यूह - रचनाओं तथा शिक्षण विधियों के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करती है। किस समय, किस प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए कौन- सी दृश्य- श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाए, रेडियो, टेलीविजन का उपयोग कर किस प्रकार से रेडियोविजन तथा कैसेटविजन का प्रयोग किया जाए तथा छात्रों को अपने सीखने की गति के अनुसार अध्ययन करने के लिए कैसे अभिक्रमित अध्ययन सामग्री तैयार की जाए, यह सैक्षिक तकनीकी ही शिक्षक को बताती है।
- प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में प्रभावशाली शिक्षक तैयार करने के लिए माइक्रो- टीचिंग, मिनी - टीचिंग सिम्युलेटेड- टीचिंग तथा टी. ट्रेनिंग आदि नवीन विधियों का प्रयोग करने के लिए शैक्षिक तकनीकी दिशा-निर्देश प्रदान करती है।
शिक्षक को अपने शैक्षिक प्रशासन तथा प्रबंध से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करने के लिए ' प्रणाली उपागम' का प्रयोग कर सकता है। वह कक्षा में व्यक्तिगत भिन्नताओं की समस्या के समाधान के रूप में अभिक्रमित अनुदेशन का उपयोग कर सकता है।
सिंह तथा कुलश्रेष्ठ 1980 में ठीक ही लिखा है-
(२) सीखने के क्षेत्र में आवश्यकता
- शैक्षिक तकनीकी हमें सीखने की प्रभावपूर्ण विधियों तथा सिद्धांतों का ज्ञान प्रदान करती है, सीखी हुई विषय - वस्तु को स्थाई करने की विभिन्न - प्रक्रियाओं का अध्ययन कराती है और छात्रों में सीखने के प्रति प्रेरणा जागृत करने में तथा उनकी रुचि बनाए रखने में सहायता प्रदान करती है। सीखने के क्षेत्र में छात्रों को उनकी गति के अनुसार ही सीखने के सिद्धांत का पालन करता है।
- शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने, दोनों ही प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक विवेचन कर शिक्षण अधिगम व्यवस्था बनाए रखती हैं। शिक्षण के नए प्रतिमानों की देन शैक्षिक तकनीकी ही है, जो हमें अधिगम और शिक्षण के स्वरुप को भली - भांति समझते हैं। इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी सीखने और सीखने की प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली तथा सार्थक बनाने में शिक्षक तथा शिक्षार्थी एवं प्रशिक्षणार्थी सभी के लिए उपयोगी बनाई जा सकती हैं।
(३) समाज के लिए आवश्यकता
गैरिसन आदि द्वारा शिक्षा मनोविज्ञान के संदर्भ में कहे गए शब्द शैक्षिक तकनीकी पर ही लागू होते हैं:
- समाज में आज जनसाधारण के पास जो रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेपरिकॉर्डर आदि की सुविधाएं हैं, उनका प्रयोग शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में किया जा सकता है। शैक्षिक तकनीकी शिक्षको और छात्रों तथा जनसाधारण के ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मानोगत्यात्मक पक्षों का उचित विकास करती है। सीमित संसाधन वाले देशों के लिए शैक्षिक तकनीकी ऐसी प्रविधियों का वरदान देती है, जिनकी मदद से जन - शिक्षा का प्रचार, प्रसार तथा विस्तार होता है।
- शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से एक प्रभावशाली शिक्षक, नेता या समाज सुधारक के ज्ञान तथा कौशल का उपयोग टेलीविजन, टेप तथा रेडियो, अभिभाषण आदि के द्वारा समाज के प्रत्येक भाग तक सरलता से पहुंचाया जा सकता है।
अतः कहां जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी आज की तकनीकी युग में शिक्षक की उपादेयता बढ़ती है, छात्रों में छात्राध्यापकों को प्रभावशाली विधि से सिखाती है और समाज के लिए ज्ञान के संचयन, प्रचार, प्रसार तथा विकास के लिए अत्यंत उपयोगी है।
शैक्षिक तकनीकी का महत्व
विज्ञान के विकास तथा ज्ञान में वृद्धि ने शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक तकनीकी के प्रवेश को अनिवार्य- सा बना दिया है। विश्व के सभी देश आज शैक्षिक तकनीकी को अपनी शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। भारत ने भी इसके महत्व को स्वीकार किया है।
1986 में तैयार की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से भी उसका महत्व स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रतिवेदन के अनुसार, नई तकनीकों का प्रयोग शैक्षिक संस्थाओं को शिक्षण के स्थान पर अधिगम संस्थानों में परिवर्तित कर सकता है।"
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