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एडगर डेल का अनुभव शंकु Adler ka Anubhav shanku

एडगर डेल का अनुभव शंकु  

एडगर डेल का अनुभव शंकु Adler ka Anubhav shanku
अनुभव शंकु Anubhav shanku

  • बहु इंद्रिय अनुदेशन के लिए एडगर डेल ने दृश्य-श्रव्य साधनों की सहायता से अनुभवों के आधार पर एक विशेष प्रकार का वर्गीकरण प्रस्तुत किया जिसे अनुभव के त्रिकोण की संज्ञा दी। सहायक सामग्री से जितने भी प्रकार के अनुभव व्यक्ति को प्राप्त होते हैं तथा वे सहायक साधन जो इन अनुभवों को प्रदान करते हैं उन्हें विभिन्न श्रेणियां में रखने का प्रयास किया गया है। 
  • इन श्रेणियों को एक त्रिकोण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस त्रिकोण में सम्मिलित अनुभवों में प्रत्यक्ष अनुभवों से लेकर अमूर्त चिंतन तक को शामिल किया गया है। इन अनुभवों के पर आधारित वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य बहू-इंद्रिय अनुदेशन प्रदान करता है ।

  • इस वर्गीकरण के पीछे डेल की मुख्य धारणा यह रही है कि शिक्षण कार्य से विद्यार्थियों को अनुभव प्रदान करने के लिए, ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों की संख्या में वृद्धि करने से विद्यार्थियों के अनुभव की गहनता बढ़ती चली जाती है। 

  • बहुइंद्रियों को क्रियाशील करने पर विद्यार्थियों को मूल अनुभव या आंतरिक अनुभव प्राप्त कराया जा सकता है। बहु इंद्रियों के साथ-साथ भाव पक्ष को शामिल कर लेने से पाठ्यवस्तु से जुड़ा शब्द ज्ञान अर्जित होता है तथा यह ज्ञान स्थाई हो जाता है।

  • एडगर डेल के अनुसार अध्यापक द्वारा प्रस्तुतीकरण एवं प्रदर्शन एक ही प्रकार का होता है परंतु विद्यार्थी जो अनुभव प्राप्त करते हैं उन्हें वह अपने मानसिक स्तर पर अपने ढंग से व्यवस्थित करते हैं इसलिए उन्हें मूल अनुभव कहा गया है। इस प्रकार अनुभव की प्रक्रिया मनोवैज्ञानिक और आंतरिक हुई।

मनुष्य प्राय निम्नलिखित स्रोतों व साधनों से अनुभव प्राप्त करने में सक्षम होता है -

  • (१) ज्ञानेंद्रिय से प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा क्रिया करने से प्राप्त अनुभव।
  • (२) चित्रों तथा अन्य रूप से प्रस्तुत आकृतियों का अवलोकन।
  • (३) मौखिक या मुद्रित शब्दों व संकेतों के माध्यम से प्राप्त अनुभव।
  • (४) कर्मेंद्रिय द्वारा प्राप्त अनुभव।

शिक्षण कार्य में शाब्दिक अनुक्रियाओं का विशेष उपयोग किया जाता है। इन साधनों से विद्यार्थी अनुभव प्राप्त करते हैं। इन साधनों से अनुभव प्राप्त करने के लिए अध्यापक को निम्नलिखित तीन प्रकार की क्रियाएं करनी पड़ती हैं।

  • (१) शाब्दिक अंतः क्रिया अथवा कथन 
  • (२) दिखाना या प्रदर्शित करना
  • (३) कार्य करना

एडगर डेल के शंकु प्रतिमान के मुख्य बिंदु या उद्देश्य

शिक्षण सामग्री तथा सहायक प्रणालियों में सापेक्ष प्रभावशीलता को स्पष्ट करना। इस शंकु प्रतिमान में निम्नलिखित चार प्रकार के दृश्य - श्रव्य साधनों के शिक्षक प्रभावों को प्रदर्शित किया गया है अर्थात प्रतिमान के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं-

  • a) शिक्षण सहायक सामग्री एवं प्रविधियां
  • (b) सहायक सामग्रियों के संदर्भ में ज्ञानेंद्रियों तथा कर्मेंद्रियों की क्रियाशीलता
  • (c) बहु इंद्रियों और मूल अनुभव का संबंध
  • (d) शिक्षण सहायक सामग्री तथा सहायक प्रणालियों की प्रभावशीलता

एडगर डेल का अनुभव त्रिकोण

 (१) मौखिक संकेत

  • मौखिक शिक्षण प्रविधि का प्रयोग सामान्यतः कक्षा में किया जाता है अध्यापक बोलता है शब्दों के माध्यम से विचार, सिद्धांत आदि का प्रस्तुतीकरण संभव होता है इस प्रविधि में बोलने पर अधिक महत्व दिया जाता है। विद्यार्थी अपनी श्रव्य इंद्रियों के द्वारा ही ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा अनुभव ग्रहण करते हैं मौखिक संकेत का इंद्रियों पर शैक्षिक प्रभाव बहुत कम होता है।

(२) दृश्यात्मक संकेत

  • दृश्यात्मक शिक्षण प्रविधि का प्रयोग भी समानतया कक्षा में किया जाता है। इसमें अध्यापक श्यामपट्ट पर चोक के द्वारा लिखता है और छात्रों को पढाता है। इस प्रविधि में लिखने पर अधिक महत्व दिया जाता है विद्यार्थी अपनी श्रव्य और दृश्य दोनों इंद्रियों का प्रयोग कर ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा अनुभव ग्रहण करते हैं एडगर डेल ने मौखिक संकट की अपेक्षा दृश्यात्मक संकेत को अधिक महत्व दिया है क्योंकि इसका इंद्रियों पर प्रभाव मौखिक संकेत की अपेक्षा अधिक होता है ।

(३) रेडियो प्रसारण 

  • रेडियो में केवल सुनने की क्रिया ही होती है। रेडियो में केवल श्रव्य इंद्रियों ही क्रियाशील रहते हैं। रेडियो द्वारा एक मार्गीय संप्रेषण होता है परंतु फिर भी ज्ञान अर्जन में रेडियो का महत्व कम नहीं है। रेडियो द्वारा ही शैक्षिक सामग्री का प्रसारण प्रभावी ढंग से किया जाता है।

(४) स्थिर चित्र

  • स्थिर चित्रों में स्लाइड, फिल्म, स्ट्रिप्स चित्रों आदि शामिल है। इनमें विद्यार्थी की बोधगम्यता बढ़ती है। इस कार्य के लिए ओवरहेड प्रोजेक्टर का प्रयोग अधिक किया जा रहा है इसके लिए पारदर्शियां बनानी होती हैं। विद्यार्थियों की रुचि अचल चित्रों के प्रोजेक्टर में अधिक होती है।

(५) चलचित्र 

  • एडगर डेल ने बताया कि चल- चित्र का शैक्षिक प्रभाव छात्रों को इंद्रियों पर अधिक प्रभाव पड़ता है दूरदर्शन के द्वारा विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रम छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। ये कार्यक्रम विभिन्न विशेषज्ञों के द्वारा तैयार किए जाते हैं। अतः इनका प्रभाव छात्रों पर प्रभावशाली ढंग से पड़ता है।

(६) प्रदर्शन सामग्री

  •  विद्यार्थियों को कक्षाओं से बाहर किसी प्रदर्शनी तथा संग्रहालय में ले जाया जाता है और वहां पर वस्तुओं को मूल रूप से दिखाया जाता है। स्कूलों में भी प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है ताकि विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त हो सके।

 (७) भ्रमण

  • इस प्रकार के प्रविधि द्वारा बच्चों को बाहर शैक्षिक भ्रमण के लिए ले जाया जाता है तथा स्कूल और समुदाय में संपर्क स्थापित किया जाता है। इससे विद्यार्थी मूल अनुभव प्राप्त करता है शैक्षिक भ्रमण द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किये जा सकते हैं। कक्षा शिक्षण में प्रत्यक्ष अनुभवों की विशेष उपयोगिता होती है।

 (८) प्रदर्शन

  • कई जटिल प्रक्रियाओं के स्पष्टीकरण के लिए प्रदर्शन किया जाता है लेकिन इस प्रदर्शन के दौरान विद्यार्थी निष्क्रिय तथा अध्यापक क्रियाशील होता है। इसमें देखने के साथ-साथ सुनने का अनुभव भी प्राप्त होता है या सुनने के साथ-साथ देखने का अनुभव प्राप्त होता है। प्रदर्शन का आयोजन शिक्षक द्वारा ही किया जाता है तथा सभी विद्यार्थी दर्शक और श्रोता होते हैं।

(९) अभिनय में भाग लेना

  • विद्यार्थियों को भूमिका निर्वाह द्वारा भी अनुभव कराए जाते हैं। विद्यार्थी इस प्रकार विभिन्न भूमिकाओं से अनुभव प्राप्त करते हैं। ये अनुभव भी अधिक सार्थक होते हैं । भूमिका निर्वाह के दौरान विद्यार्थियों को अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

(१०) आयोजित अनुभव

  • इस प्रकार के अनुभवों में शामिल है मॉडल या प्रतिमान बनाना, प्रयोगशालाओं में प्रयोग करना, सर्वेक्षण करना आदि इसमें वास्तविक वस्तु का सरलीकारण कर लिया जाता है। कई परिस्थितियों में वास्तविक वस्तु का प्रत्यक्षीकरण संभव नहीं होता। कई बार इनका आकार बहुत बड़ा या बहुत छोटा हो जाता है ।

(११) वास्तविक अनुभव

  • प्रत्यक्ष बहू इंद्रिय अनुभव होते हैं, जैसे देखना, सुनना, चलकर देखना ,सूंघना, स्पर्श करना। इन अनुभवों में बहु इंद्रियों की क्रियाशीलता शामिल होती है। यह अनुभव सार्थक भी होते हैं तथा इसमें पाठ्यवस्तु का शुद्ध ज्ञान प्राप्त होता है।

एडगर डेल के शंकु प्रतिमान की उपयोगिता 

  • (१) इसमें विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्रियों को शामिल किया जाता है जिनकी अधिगम अनुभव की दृष्टि से व्याख्या की जा सकती है।
  • (२) अधिगम अनुभवों की व्यापकता एवंगहनता ज्ञानेंद्रियों तथा कर्मेंद्रियों पर निर्भर करती है।
  • (३) इसमें अधिगम अनुभवों की व्यापकता के संदर्भ में शिक्षण सहायक सामग्रियों का विवेचन किया जाता है।
  • (४) शिक्षण सहायक सामग्री के उपयोग में ज्ञानेंद्रियों की क्रियाशीलता का विवरण दिया गया है अर्थात किस सामग्री के उपयोग से कौन सी ज्ञानेंद्रियां क्रियाशील होती हैं।
  • (५) सहायक सामग्री के उपयोग से भावात्मक और ज्ञानात्मक पक्ष भी विकसित होता है तथा धारण शक्ति में वृद्धि होती है।
  • (६) बहु ज्ञानेंद्रियों की क्रियाशीलता मूल अनुभवों की ओर अग्रसर करती है।
  • (७) शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग शिक्षण को प्रभावशाली बनाता है।
  • (८) चल चित्रों के उपयोग से बहुपक्षीय अवलोकन होता है जो की मूल अनुभव प्रदान करता है।

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