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अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा | Abhiprerna ka Arth evam Paribhasha | Meaning and definition of motivation

 अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and definition of motivation)


अभिप्रेरणा के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम निम्नलिखित परिभाषाऐ दे रहे हैं-

थॉमसन - "अभिप्रेरणा व कला है, जिसके द्वारा छात्रों में ज्ञान प्राप्त करने की रुचि उत्पन्न की जाती है।"

वूडवर्थ- "अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समूह है, जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार स्पष्ट करते हैं।

जॉनसन - "अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाकलापों का प्रभाव है, जो प्राणी के व्यवहार को उचित मार्ग पर ले जाती है।

मैकडूगल- "अभिप्रेरणा प्राणी में वे शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक दशाएं हैं, जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करते हैं।

लॉवेल - अभिप्रेरणा मनोशारीरिक अथवा आंतरिक प्रक्रिया है, जो आवश्यकताओं से आरंभ होती है तथा जो किसी क्रिया को जारी रखती है, जिससे उसे आवश्यकता की संतुष्टि होती है।"

अभिप्रेरणा के प्रकार

मासलो महोदय ने आवश्यकताओं की दृष्टि से अभिप्रेरणा को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया है-

  • (१) बाह्य अभिप्रेरणा 
  • (२)आंतरिक अभिप्रेरणा 
  • (३)आंतरिक बाह्य अभिप्रेरणा

 (१) बाह्य अभिप्रेरणा 

  • बाह्य अभिप्रेरणा का तात्पर्य शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के सामने ऐसे उपयुक्त वातावरण को प्रस्तुत करना है, जिसमें रहते हुए उन्हें व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहन मिले। इस दृष्टि से बाह्य अभिप्रेरणा का संबंध संदर्भ कारकों से हैं। मासलो महोदय के अनुसार बाह्य अभिप्रेरणा निम्न स्तर की शारीरिक सुरक्षा तथा संबद्ध स्थापना संबंधी प्रारंभिक तीन आवश्यकताओं के लिए प्रभावशाली होती है। 
  • उन्होंने यह भी बताया कि मंद बुद्धि वाले विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करने के लिए प्रशंसा तथा पुरस्कार आदि प्रविधियां का प्रयोग किया जा सकता है ।ऐसे ही प्रतिभावशाली विद्यार्थियों को दंड तथा निंदा आदि प्रविधियों के द्वारा अभी प्रेरित किया जा सकता है।

(२) आंतरिक अभिप्रेरणा

  • आंतरिक अभिप्रेरणा का तात्पर्य यह है कि विद्यार्थियों को विषय वस्तु तथा क्रिया द्वारा स्वतः प्रोत्साहन मिले। इस दृष्टि से आंतरिक अभिप्रेरणा का संबंध पाठ्यवस्तु कारकों से है। स्मरण रहे कि आंतरिक अभिप्रेरणा का संबंध व्यक्ति की आंतरिक दशा से होता है ।यह विद्यार्थियों में स्वयं ही निहित रहती है। अतः आंतरिक अभिप्रेरणा द्वारा विद्यार्थियों को स्वयं क्रिया करके करके नवीन तथ्यों की खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 
  • मासलो महोदय के अनुसार आंतरिक अभिप्रेरणा उच्च स्तर के सम्मान तथा यथार्थीकरण की आवश्यकताओं के लिए प्रभावशाली होती है। उन्होंने आगे बताया कि आंतरिक अभिप्रेरणा देने के लिए निम्न कक्षाओं में तो नहीं परंतु हां उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों में प्रगति का ज्ञान तथा आकांक्षा स्तर आदि प्रविधियों का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है। स्मरण रहे की आंतरिक अभिप्रेरणा जनतांत्रिक प्रणाली पर आधारित होने के नाते अभिप्रेरणा का सर्वोत्तम रूप माना जाता है।

(३) आंतरिक बाह्य अभिप्रेरणा-

  • आंतरिक बाह्य अभिप्रेरणा का संबंध वातावरण तथा पाठ्यवस्तु दोनों से होता है। इस दृष्टि से यह मध्य वर्ग की अभिप्रेरणा है। मैस्लो महोदय ने भी आंतरिक बाह्य अभिप्रेरणा को मध्य वर्ग की अभिप्रेरणा माना है और यह बताया कि यह अभिप्रेरणा मध्य वर्ग की सुरक्षा, संबंध, स्थापना तथा सम्मान की आवश्यकताओं के लिए अधिक प्रभावशाली होती है। 
  • इसका प्रयोग विद्यार्थियों में सामाजिक क्षमताओं को विकसित करने के लिए किया जाता है। शिक्षक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को सामाजिक दृष्टि से विकसित करने के लिए सफलता एवं असफलता, तथा प्रतियोगिता एवं सहयोग आदि अभिप्रेरणा की प्रविधियों का प्रयोग करें।

अभिप्रेरणा के प्रमुख निर्धारक


 कक्षा में अभिप्रेरणा किस प्रकार प्रभावशाली कार्य करती रही है, इसका निर्णय अनेक प्रभावी निर्धारक करते हैं। कक्षा में प्रेरणा पर अनेक बातें प्रभाव डालती हैं। प्रमुख प्रभावक तत्व निम्न प्रकार है -

(१) आदतें

  •  बच्चों की आदतें नवीन ज्ञान व पूर्वज्ञान पर आधारित होने से पाठ के विकास में सहायक होते हैं।

(२) रुचि 

  • जिस पाठ या कार्य में बालक की रुचि होती है, उसे वह तुरंत सीख लेते हैं। अध्यापक को चाहिए कि वह ऐसी सहायक सामग्री, पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण के लिए अपनाएं, जिनसे बालक पाठ में रुचि लें । 

(३) आवश्यकता 

  • आवश्यकता आविष्कार की जननी है। बालकों को ही नहीं, बड़ों को भी यह प्रवृत्ति होती है कि वे आवश्यकता के वशीभूत होकर ही कार्य करते हैं। अध्यापक को चाहिए कि बच्चों को पाठ्य सामग्री की आवश्यकता अनुभव कराई जाए।

(४) अभिवृत्ति

  •  अभिप्रेरणा बालकों में अभिवृत्ति का विकास करने में सहायता देती है ।बालकों में आवृत्ति का विकास होने से वे कार्य को अच्छी तरह करते हैं ।

(५) आकांक्षा 

  • अभिप्रेरणा का प्रमुख प्रतिकारक है, आकांशा करना। अच्छे अध्यापक यह बताते हैं कि वे छात्रों को यह कहकर अभिप्रेरित करते हैं कि वे उनके कार्य की अपेक्षा करते हैं। ऐसे अध्यापक गृह कार्य, प्रश्न पूछने रोचक सूचना देने के माध्यम से छात्रों को अभिप्रेरित करते हैं ।छात्रों को उनकी क्षमता के अनुसार मार्गदर्शन दिया जाता है। ऐसे अध्यापक आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार के अभिप्रेरकों का लाभ उठाते हैं।

(६) संवेगात्मक स्थिति

  • अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों की संवेगात्मक स्थिति का पूरा-पूरा ध्यान रखें। इस बात का ध्यान उसे अवश्य रखना चाहिए कि जो ज्ञान बालक को दे दिया जाता है उसके प्रति बालक को घृणा न हो वर्ण प्रेम हो। सीखे जाने वाले ज्ञान के प्रति बालक का संवेदनात्मक संबंध स्थापित हो जाता है तो निश्चित ही वह अभिप्रेरणा प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करेगा।

(७) प्रगति का ज्ञान 

  • अध्यापक को चाहिए कि बच्चों को उनकी प्रगति का ध्यान दिलाता रहे, ऐसा करने से उनमें क्रियाशीलता बनी रहती है।

(८) प्रतियोगिता

  • विद्यालय में छात्रों में प्रतियोगिता तथा प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति सामान्यतः देखी जाती है। अध्यापक कक्षा में छात्रों को एक दूसरे से अधिक अंक प्राप्त करने की अभिप्रेरणा दे सकता है।

(९) पुरस्कार एवं दंड

 पुरस्कार एवं दंड का अभिप्रेरणा में अत्यधिक महत्व है। जब बालक को पुरस्कार अथवा दंड दिया जाता है तो उसका एक ही अर्थ होता है, भावी व्यवहार पर अनुकूल प्रभाव डालना। पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक बालक कार्य करता है। अध्यापक को चाहिए कि वह बालकों में कार्य की अभिवृत्ति उत्पन्न करें, पुरस्कार के प्रति लालच नहीं। विद्यालय में पुरस्कार के लाभ इस प्रकार हैं-
  • (a) पुरस्कार से आनंद प्राप्त होता है और प्रोत्साहन मिलता है। 
  • (b) व्यक्ति को कार्य की अभिप्रेरणा देते हैं ।
  • (c) रुचि एवं उत्साहवर्धक होते हैं।
  • (d) मनोबल उत्पन्न करते हैं एवं छात्रों के अहम को संतुष्ट करते हैं।

(१०) अध्यापक की अभिप्रेरक भूमिका

अभिप्रेरणा का लाभ उठाने में अध्यापक की प्रेरणा प्रमुख है। उत्तम शिक्षण विधियों का विनियोग करके पाठ्य - सामग्री को वे रोचक बनाते हैं। छात्रों में प्रोत्साहन तथा पुरस्कार के माध्यम से आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं। छात्रों की आवश्यकताओं को समझते हैं और उसके अनुसार वे शिक्षण कार्य करते हैं।

(११) विद्यालय का वातावरण

विद्यालय का वातावरण ऐसा होना चाहिए जिससे बालक को स्वयं अभिप्रेरणा प्राप्त हो। जिन विद्यालयों में वातावरण अच्छा नहीं होता। वहां के छात्रों में क्रियाशीलता अधिक नहीं पाई जाती विद्यालय का वातावरण अध्यापक तथा विद्यार्थी दोनों ही मिलकर बनाते हैं।

(१२) आकांक्षाओं का स्तर

आकांक्षा के स्तर से यह अभिप्राय है कि जो छात्रों को सिखाया जाए, वह उनकी शारीरिक, मानसिक परिपक्वता के अनुकूल हो।अनुभव में आया है कि जब ज्ञान या क्रिया का स्तर बालकों में ऊंचा हो जाता है तभी उनमें कार्य के प्रति अरुचि तथा घृणा उत्पन्न हो जाती है ।

(१३) असफलता का भय

अध्यापक को कभी-कभी बालकों को उनकी असफलता का भाई भी दिखना चाहिए। असफलता के भय से छात्र कार्य करने के लिए अभी प्रेरित होते हैं।

(१४) परिचर्चाऐं तथा सम्मेलन

आजकल सामूहिक रूप से कार्य करने व सीखने पर अधिक बल दिया जाता है, समूह में बच्चे अधिक कार्य करते हैं। ब्रिग्स ने एक प्रयोग द्वारा यह निष्कर्ष निकला कि विद्यार्थी समूह में अधिक ज्ञान प्राप्त करते है। अध्यापक को चाहिए कि वह समय-समय पर परिचर्चाओं तथा सम्मेलनों का आयोजन करें।

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