मंदिर' और ' सद्गति' कहानी के आधार पर प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए।
प्रेमचंद हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक है, जिन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं का गंभीर अध्ययन और चित्रण किया। उनकी रचनाओं में विशेष रूप से दलित जीवन की समस्याओं और उनकी सामाजिक स्थिति पर गहरा दृष्टिकोण मिलता है। उनकी कहानियां ' मंदिर' और ' सद्गति' दलित जीवन की पीड़ा, संघर्ष और समाज की निर्दयता को बहुत ही मार्मिकता तरीके से प्रस्तुत करती है। इन कहानियों के माध्यम से प्रेमचंद ने दलित जीवन संबंधी अपने विचारों को प्रकट किया है।
'मंदिर' कहानी:
'मंदिर'कहानी में प्रेमचंद ने दलितों के धार्मिक और सामाजिक भेदभाव को उजागर किया है। इस कहानी का मुख्य पात्र जलधारी एक दलित है, जो मंदिर में प्रवेश करना चाहता है। लेकिन उसकी यह आकांक्षा उच्च जाति के लोगों को स्वीकार नहीं है। जलधारी का मंदिर में प्रवेश करने की इच्छा एक सामान्य धार्मिक आकांक्षा है, लेकिन समाज इसे उसकी जाति के कारण पाप समझता है।
जलधारी की यह इच्छा उसे समाज के उच्च वर्गों के क्रोध और हिंसा का शिकार बनाती है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने यह दिखाया है कि धार्मिक स्थलों पर भी दलितों के साथ भेदभाव होता है। जलधारी के प्रति समाज का व्यवहार उसकी सामाजिक स्थिति को और भी नीचा दिखाने का प्रयास करता है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया कि समाज में व्याप्त जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने दिखाया कि धर्म के नाम पर भी दलितों के साथ अन्याय और अत्याचार किया जाता है, जो कि मानवता के खिलाफ है।
'सद्गति'
सद्गति कहानी में प्रेमचंद ने दलितों के आर्थिक और सामाजिक शोषण को चित्रित किया है। इस कहानी का मुख्य पात्र दुखी एक दलित है, जो अपने काम के बदले उचित मजदूरी पाने की उम्मीद करता है। लेकिन समाज उसे केवल अपमान और दमन ही प्रदान करता है। दुखी का जीवन संघर्षों और अपमान से भरा हुआ है। वह अपनी बेटी की शादी के लिए पंडित से उचित समय निकालने की प्रार्थना करता है, लेकिन पंडित उसे काम करवाने के बाद ही समय देने का वादा करता है। दुखी काम करते-करते थक जाता हैअंततः उसकी मृत्यु हो जाती है ।
दुखी की मृत्यु के बाद भी समाज उसे आदर नहीं देता, बल्कि उसकी लाश को ठिकाने लगाने में भी लापरवाही बरतता है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने यह दिखाया है कि समाज में दलितों के प्रति कितनी गहरी उदासीनता और अमानवीयता है। दुखी की मृत्यु के बाद भी समाज उसे इंसान नहीं मानता बल्कि उसे बोझ समझता है।
प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचार:
प्रेमचंद की कहानियों में दलित जीवन की वास्तविकता का सजीव चित्रण मिलता है ।उन्होंने समाज में व्याप्त जाति आधारित भेदभाव, शोषण, और अत्याचार को उजागर किया है। उनके अनुसार, दलितों का जीवन संघर्षों और पीड़ाओं से भरा होता है, और समाज उन्हें समानता का अधिकार नहीं देता।
प्रेमचंद का मानना था कि समाज में व्याप्त जाति प्रथा को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने दलितों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास किया और उनकी समस्याओं को साहित्य के माध्यम से जनमानस के सामने लाने का काम किया। उनकी कहानियां समाज के उन वर्गों को आईना दिखाती हैं जो दलितों के साथ अन्याय और भेदभाव करते हैं।
प्रेमचंद ने यह भी दिखाया कि दलितों के संघर्ष केवल आर्थिक या सामाजिक ही नहीं है, बल्कि मानसिक और भावात्मक भी है। वे समाज के द्वारा न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी प्रताड़ित होते हैं।
उनकी कहानियां समाज को यह संदेश देती है कि सभी मनुष्यों को समानता और सम्मान का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने दलितों की दुर्दशा को साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत कर समाज को जागृत करने का प्रयास किया। उनके साहित्य में समाज में दलितों के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस प्रकार, ' मंदिर' और 'सद्गति' कहानी प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती हैं ।उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से दलितों की पीड़ा संघर्ष और समाज की निर्दयता को उजागर किया और समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया है।उनकी रचनाएं आज भी समाज में प्रासंगिक है और सामाजिक न्याय के प्रति हमें जागरुक करती हैं।
निष्कर्ष
प्रेमचंद की कहानी ' मंदिर' और ' सद्गति' उनके दलित जीवन संबंधी विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है। उन्होंने दलितों की पीड़ा, संघर्ष, और समाज की निर्दयता को बहुत ही संवेदनशील और मार्मिक तरीके से चित्रित किया हैं ।उनकी रचनाएं हमें यह संदेश देती है कि समाज में सभी मनुष्य को समानता, न्याय, और सम्मान का अधिकार मिलना चाहिए। प्रेमचंद का साहित्य समाज में परिवर्तन लाने और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी कहानियां आज भी समाज में प्रासंगिक है और हमें सामाजिक न्याय के प्रति जागरुक करती हैं।
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