Skip to main content

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत Piaget Sangyanatmak Siddhant

नमस्कार साथियों। टारगेट विद रोशनी एजुकेशन ब्लॉग में आपका स्वागत है। लेख में हम निम्नलिखित बिंदुओं का अध्धयन करेंगे।

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत Piaget Sangyanatmak Siddhant



जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत Piaget Sangyanatmak Siddhant
  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  • इंद्रिय जनित गामक अवस्था
  • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
  • मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
  • औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
  • जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व।


जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्था में विभाजित किया है:
जीन पियाजे स्विजरलैंड की मनोवैज्ञानिक थे। बालकों में बुद्धि का विकास किस प्रकार से होता है यह जानने के लिए उन्होंने अपने स्वयं के बच्चों को अपनी खोज का विषय बनाया। बच्चे जैसे जैसे बड़े होते गए वैसे ही वे उनके मानसिक विकास संबंधी क्रियाओं का भी बड़ी बारीकी से अध्ययन करते रहे। इस अध्ययन के परिणाम स्वरूप उन्होंने जिन विचारों का प्रतिपादन किया उन्हें पियाजे के मानसिक या संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य बच्चों के सीखने और सूचनाएं एकत्रित करने के तरीके से है। जीन पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार वह प्रक्रिया जिसके द्वारा संज्ञानात्मक संरचना को संशोधित किया जाता है समावेशन कहलाती है।

१. इंद्रिय जनित गामक अवस्था

  • इस अवस्था की अवधि जन्म से 2 वर्ष तक मानी जाती है।
  • मानसिक क्रियाएं इंद्रियों जनित गामक क्रियाओं के रूप में संपन्न होते हैं।
  • भूख लगने की स्थिति को बालक रोककर व्यक्त करता है इस अवस्था में व्यक्ति आंख, कान एवं नाक से सोचता है। जिन वस्तुओं को वे प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं उनके लिए उसी का अस्तित्व होता है।
  • इस आयु में बालक की बुद्धि उसके कार्यों द्वारा व्यक्त होती है। उदाहरण के लिए चादर पर बैठा शिशु, चादर पर थोड़ी दूर स्थित खिलौने को प्राप्त करने के लिए चादर को खींचकर खिलौना प्राप्त कर लेता है।
  • इस तरह इंद्रिय जनित गामक अवस्था अनुकरण स्मृति और मानसिक निर्माण से संबंधित है।

. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था

  • इस अवस्था की अवधि को 2 वर्ष से 7 वर्ष तक माना गया है।
  • इस अवस्था में बालक अपने परिवेश की वस्तुओं को पहचानने एवं उनमें विवेध करने लगता है।
  • इस दौरान बालक में भाषा का विकास भी प्रारंभ हो जाता है।
  •  इस अवस्था में बालक नई नई सूचना और अनुभवों का संग्रह करने लगता है।
  • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में बालक समस्याओं का समाधान करने योग्य हो जाता है।
  • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में बच्चों में वस्तु स्थायित्व के गुणों का विकास हो जाता है

३. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

  • इस अवस्था की अवधि को जीन पियाजे ने 7 वर्ष से 11 वर्ष तक माना है।
  • इस अवस्था में बालक में वस्तुओं को पहचानने उनका विभेदीकरण करने तथा वर्गीकरण करने की क्षमता विकसित हो जाती है।
  • इस अवस्था में बालकों का चिंतन अब अधिक क्रमबद्ध एवं तर्कसंगत होना प्रारंभ कर देता है।
  • इस अवस्था में बालक लंबाई भार आदि के संबंध में चिंतन करने लगता है।
  • इस अवस्था में बालक में भाषा का पूर्ण विकास हो जाता है।

४. औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था

  • इस अवस्था की अवधि को 11 वर्ष से लेकर प्रौढ़ावस्था तक माना गया है।
  • इस अवस्था में भाषा संबंधी योग्यता तथा संप्रेषण शीलता का विकास अपने चरम पर होता है।
  • बालक में अच्छी तरह से सोचने समस्या समाधान करने एवं निर्णय लेने की क्षमता का विकास इस अवस्था में हो जाता है।

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक का शैक्षिक महत्व


  • जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक व मानसिक विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
  • तार्किक चिंतन के विकास में बाल्यावस्था महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है अतः शिक्षकों को बच्चों में तार्किक क्षमता बढ़ाने का भरसक प्रयास करना चाहिए।
  • शिक्षकों को प्रयोगात्मक शिक्षा एवं व्यवहारिक शिक्षा पर बल देना चाहिए।
  • प्रयोगों के माध्यम से बालकों में नवीन विचार का संचार होता है।
  • नवीन दृष्टिकोण मौलिक अन्वेषण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है।
  • शिक्षक को वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करते रहना चाहिए। यह प्रतियोगिता नवीन सोच एवं नवीन विचारों को जन्म देती है। 
  • शिक्षकों को चाहिए कि बालकों को वर्ग में समान रुचि के आधार पर विचार विनिमय कराएं जिससे तार्किक ज्ञान का विकास हो।




Comments

Popular posts from this blog

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें shaikshik takniki ka Arth tatha paribhasha

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें   शैक्षिक तकनीकी का अर्थ   शैक्षिक तकनीकी कोई शिक्षण- पद्धति नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जिसके आधार पर शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों की अधिकतम प्राप्ति के लिए विभिन्न व्यूह रचनाओं का विकास किया जा सकता है। अब शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित हो जाते हैं तो उनको प्राप्त करने के लिए शैक्षिक तकनीकी अस्तित्व में आती है। सामान्य भाषा में ' तकनीकी ' शब्द का अर्थ ' शिल्प ' अथवा ' कला विज्ञान ' से है। तकनीकी शब्द को ग्रीक भाषा में ' टेक्निकोज ' शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है ' एक कला ' तकनीकी का संबंध कौशल तथा दक्षता से है।। कुछ वर्ष पहले शैक्षिक तकनीकी को दृश्य- श्रव्य सामग्री से और कक्षा में अध्यापन सामग्री से संबंधित माना जाता था, लेकिन शैक्षिक तकनीकी और श्रव्य - दृश्य सामग्री एक जैसे नहीं है। शैक्षिक तकनीकी की परिभाषायें शैक्षिक तकनीकी के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए विभिन्न परिभाषायें दी गई है जिनका विवरण अग्र प्रकार है- एस.एस. कुलकर्णी के अनुसार, " शैक्षिक तकनीकी को शिक्षण प्रक्रिया में प्...

बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष के उद्देश्य Bloom Ke Gyanatmak Bhavatmak Paksh

 बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक पक्ष  इस पक्ष का इस पक्ष का विकास प्रोफेसर ब्लूम ने 1956 में किया। इसका संबंध प्रमुख रूप से सूचनाओं, ज्ञान तथा तथ्यों का ज्ञान एवं विषय वस्तु के विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन आदि बौद्धिक क्रियाओ से होता है। बौद्धिक प्रक्रियाएं बालक को अधिक अनुभव प्रदान कर अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की ओर ले जाती है। इस पक्ष के उपवर्गीकरण इस प्रकार है _ ज्ञान  बोध  प्रयोग  विश्लेषण संश्लेषण  मूल्यांकन ज्ञानात्मक उद्देश्य इस बात पर बल देते हैं कि विद्यार्थियों को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि ज्ञानात्मक पक्ष से संबंधित व्यवहार में प्रत्यय स्मरण तथा पहचान की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया क्रियाशील रहती है इसलिए स्कूल में पढ़ाई जाने वाले विभिन्न विषयों के द्वारा इस पक्ष को अधिक से अधिक विकसित करने का प्रयास किया जाता है इस पक्ष से संबंधित विभिन्न उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है- १ ज्ञान - ज्ञान उद्देश्य का संबंध शब्दों, तथ्यों, नियमों, सूचनाओं एवं सिद्धांतों की सहायता से विद्यार्थियों की प्रत्ययस्मरण तथा पहचान संबंधी क...

अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा | Abhiprerna ka Arth evam Paribhasha | Meaning and definition of motivation

  अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of motivation) अभिप्रेरणा के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम निम्नलिखित परिभाषाऐ दे रहे हैं- थॉमसन - "अभिप्रेरणा व कला है, जिसके द्वारा छात्रों में ज्ञान प्राप्त करने की रुचि उत्पन्न की जाती है।" वूडवर्थ - "अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समूह है, जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार स्पष्ट करते हैं। जॉनसन - "अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाकलापों का प्रभाव है, जो प्राणी के व्यवहार को उचित मार्ग पर ले जाती है। मैकडूगल - "अभिप्रेरणा प्राणी में वे शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक दशाएं हैं, जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करते हैं। लॉवेल - अभिप्रेरणा मनोशारीरिक अथवा आंतरिक प्रक्रिया है, जो आवश्यकताओं से आरंभ होती है तथा जो किसी क्रिया को जारी रखती है, जिससे उसे आवश्यकता की संतुष्टि होती है।" अभिप्रेरणा के प्रकार मासलो महोदय ने आवश्यकताओं की दृष्टि से अभिप्रेरणा को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया है- (१) बाह्य अभिप्रेरणा  (२)आंतरिक अभिप्रेरणा  (३)आंतरिक बाह्य अभिप्रेरणा  (१) बाह्य अ...