Skip to main content

IGNOU MA Hindi Assignment MHD 10 प्रेमचंद की कहानियां

IGNOU MA Hindi Assignment 

MHD 10

IGNOU MA Hindi Assignment
MHD 10 प्रेमचंद की कहानियां 


IGNOU MA Hindi MHD 10 Premchand ki kahaniyan प्रेमचंद की कहानियां


निम्नलिखित में से किन्ही दो की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए

(क) काम ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास मिटती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसे वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, उसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊं। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, इसकी आवश्यकता को देखो और अवसर देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो । गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगराज को दांव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बांध लो मेरी यह मेरी जन्म भर की कमाई है।

संदर्भ

  • यह उद्धरण प्रेमचंद के उपन्यास "गोदान" से लिया गया है, जो भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह अंश समाज में प्रचलित भ्रष्टाचार और अनैतिकता पर तीखा व्यंग करता है। चलिए इस अंश को विस्तृत रूप में समझते हैं।

संदर्भ और पृष्ठभूमि

  • "गोदान" उपन्यास भारतीय किसान जीवन और उनके संघर्षों पर आधारित है। इसके मुख्य पात्र होरी एक किसान है जो इमानदारी और आदर्शों के बीच जूझता है। यह अंश उपन्यास के उस हिस्से से है जहां समाज में फैली अनैतिकता और भ्रष्टाचार को उजागर किया गया है।

उद्धरण की व्याख्या 

ऊपरी आय का महत्व

  • "ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आए हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है।" यहां लेखक दर्शा रहे हैं की मासिक वेतन एक अस्थाई और सीमित आय हैं। पूर्णमासी का चांद एक प्रतीक है जो केवल एक रात के लिए पूर्ण होता है और फिर धीरे - धीरे गायब हो जाता है। इसका तात्पर्य है कि वेतन भी सीमित होता है और तेजी से खर्च हो जाता है।

ऊपरी आय की निरंतरता 

  • "ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदा प्यास मिटती है।" इसके विपरीत, ऊपरी आय (अर्थात भ्रष्टाचार से प्राप्त अतिरिक्त धन) को बहते हुए स्रोत की तरह बताया गया है, जो निरंतर और अस्थाई होता है। इससे यह पता चलता है कि ऊपरी आय को कभी खत्म न होने वाला संसाधन माना जाता है।

वेतन और ऊपरी आय का स्रोत

  • "वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, उसी से उसकी बरकत होती है।" यहां लेखक वेतन को मानव निर्मित बताते हैं, जो सीमित होता है। जबकि ऊपरी आय को ईश्वर प्रदत्त बताते हैं, जिसमें हमेंसा वृद्धि होती है। यह तर्क पूरी तरह से अनैतिक है, लेकिन समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को दर्शाता है।

विवेक और अवसर की आवश्यकता 

  • "इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, इसकी आवश्यकता को देखो और अवसर देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो।" लेखक यह बताते हैं कि भ्रष्टाचार में भी विवेक की जरूरत होती है। इसमें व्यक्ति की आवश्यकता और अवसर का ध्यान रखना जरूरी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कैसे लोग अपने फायदे के लिए दूसरों की मजबूरियों का फायदा उठाते हैं।

गरज वाले और बेगराज लोगों के साथ व्यवहार

  • "गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगराज को दांव पर पाना जरा कठिन है।" लेखक यह बता रहे हैं कि जिन लोगों को जरूरत होती है, उनके साथ कठोर व्यवहार करना आसान और फायदेमंद है। लेकिन जिन लोगों को कोई आवश्यकता नहीं होती, उन्हें फंसाना मुश्किल है। यह भ्रष्टाचार के मनोविज्ञान को दर्शाता है।

अनुभव का सार 

"इन बातों को निगाह में बांध लो। यह मेरी जन्म भर की कमाई है।" लेखक यहां अपने जीवन के अनुभव से सिखाई गई बातों को साझा कर रहे हैं, जो भ्रष्टाचार और अनैतिकता से भरी है।

निष्कर्ष

  • यह उद्धरण भारतीय समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और नैतिक पतन को उजागर करता है। प्रेमचंद ने बड़े ही संजीव और व्यंगयात्मक तरीके से समाज की इस कड़वी सच्चाई को प्रस्तुत किया है। उसके इस वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि लोग अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए अनैतिक तरीकों का सहारा लेते हैं और इसे सामान्य मानते हैं। यह अंश हमारे समाज को आत्म मंथन करने और सुधार की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करता है।

(ख) आज 40 वर्षों से घर के प्रत्येक मामले में फूलमती की बात सर्वमान्य थी। उसने 100 कहा तो 100 खर्च किए गए, एक कहा तो एक ! किसी ने मीन - मेंख ना की। यहां तक की पंडित अयोध्या नाथ भी उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ ना करते थे; पर आज उसकी आंखों के सामने प्रत्यक्ष रूप से उसके हुक्म की अपेक्षा की जा रही है! इसे वह क्योंकर स्वीकार कर सकती।

संदर्भ 

  • यह अंश हिंदी साहित्य के प्रख्यात लेखक प्रेमचंद की एक रचना से लिया गया है, जिसमें मुख्य पात्र फूलमती का चरित्र चित्रण प्रस्तुत किया गया है। इस उद्धरण में परिवार और समाज में महिलाओं की भूमिका और उनकी शक्ति के बारे में महत्वपूर्ण बातें की गई है।

व्याख्या 

पृष्ठभूमि 

  • फूलमती एक ऐसे परिवार की स्त्री है जिसने 40 वर्षों से घर के प्रत्येक मामले में अपनी निर्णायक शक्ति को स्थापित कर रखा है। यह केवल उसकी दृढ़ता और साहस का परिणाम नहीं है, बल्कि इस बात का प्रतीक भी हैं कि परिवार में उसकी बात को कितना मान - सम्मान दिया जाता हैं।उसके पति पंडित अयोध्यानाथ तक उसकी इच्छाओं के खिलाफ कुछ नहीं करते, जो उसे समय की सामाजिक संरचना में एक असामान्य बात थी, क्योंकि सामान्यतः पुरुषों का ही वर्चस्व रहा था।

फूलमती की भूमिका और निर्णयशक्ति 

  • इस उद्धरण में स्पष्ट किया गया है कि फूलमती का परिवार में कितना महत्वपूर्ण स्थान था। उसके कहने पर परिवार के हर सदस्य उसकी बात मानते थे, चाहे वह 100 खर्च करने की बात हो या एक खर्च करने की। इसका तात्पर्य है कि उसने परिवार के आर्थिक मामलों में भी अपनी निर्णय शक्ति को स्थापित किया हुआ था।

पंडित अयोध्या नाथ का सम्मान

  • यह तथ्य की पंडित अयोध्या नाथ भी फूलमती की इच्छाओं के विरुद्ध कुछ भी नहीं करते थे, यह दर्शाता है कि उनके बीच में गहरा सम्मान और समझ का रिश्ता था। यह भी संकेत करता है कि पति - पत्नी के बीच की बातचीत और निर्णय प्रक्रिया में फूलमती की राय को कितनी महत्वता दी जाती थी।

वर्तमान स्थिति का वर्णन

  • उद्धरण का सबसे महत्वपूर्ण भाग यह है कि वर्तमान समय में फूलमती के हुक्म की अपेक्षा की जा रही है। यह उसके लिए असहनीय है क्योंकि उसने हमेशा अपने परिवार को अपने हिसाब से चलाया है। उसका परिवार उसके आदेशों का पालन करता आया है और आज उसकी बातों की अनदेखी उसे आहत कर रही हैं।


महिलाओं की भूमिका पर व्यापक विचार

  • इस उद्धरण के माध्यम से प्रेमचंद ने उस समय की सामाजिक परिस्थिति में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला है। फूलमती जैसी स्त्रियां अपने घर में नेतृत्व कर सकती थी, परिवार का प्रबंध कर सकती थी और आर्थिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकती थी।

परिवर्तन की स्वीकृति

  • यह उद्धरण यह भी दर्शाता है कि कैसे समय के साथ परिस्थितियां बदलती हैं और लोग भी बदलते हैं। फूलमती को अपनी बदलती स्थिति के साथ ताल में बैठना कठिन हो रहा है। उसके लिए यह स्वीकार करना मुश्किल है कि अब इसका वर्चस्व इस प्रकार नहीं रहा जैसा पहले था।

फूलमती की मनोदशा :

  • उपरोक्त उद्धरण में फूलमती की मनोदशा की भी चर्चा की गई है। 40 वर्षों तक अपने हुकुम की पाबंदी के बाद अचानक उसे नकारा जाना, उसके लिए असहनीय है। इससे उसकी व्यथा और संघर्ष का आभास होता हैं।

निष्कर्ष

  • फूलमती के माध्यम से प्रेमचंद ने यह स्पष्ट किया है कि समाज में महिलाओं का सम्मान और उनके निर्णयशक्ति कितनी महत्वपूर्ण है। यह उद्धरण उसे समय की सामाजिक संरचना का भी चित्रण करता है जिसमें महिलाएं अपनी क्षमता और इच्छा के बल पर परिवार का नेतृत्व कर सकती थी। यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण सीख है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, किसी भी व्यक्ति की आत्मसम्मान और उसके द्वारा किए गए योगदान का महत्व कभी नहीं घटता ।
  • इस उद्धरण में समाहित विषयों पर विचार करते हुए, यह स्पष्ट होता है कि समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों के प्रति हमें सजग रहना चाहिए। महिलाओं की भूमिका केवल परिवार तक सीमित नहीं होती, बल्कि वे समाज के निर्माण और उसकी दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

(2) प्रेमचंद की कहानियों में निहित राष्ट्रीय चेतना पर प्रकाश डालिए।

 प्रेमचंद, हिंदी और उर्दू साहित्य के महान कथाकार, अपनी कहानियों में सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक मुद्दों को प्रमुखता से उकेरते हैं। उनकी कहानियों में निहित राष्ट्रीय चेतना एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो भारतीय समाज की विविध पहलुओं को प्रस्तुत करती है। प्रेमचंद की कहानियां न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि वह एक गहन सामाजिक संदेश भी देती हैं। प्रेमचंद की कहानियों में राष्ट्रीय चेतना के विभिन्न आयामों का स्पष्ट चित्रण मिलता है। उनकी रचनाओं में स्वतंत्रता संग्राम, ग्रामीण जीवन, सामाजिक असमानता, और भारतीय संस्कृति के प्रति गर्व के भाव प्रमुखता से उभरते हैं।

1.स्वतंत्रता संग्राम की झलक

  • प्रेमचंद की कहानियों में स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और बलिदान का सजीव चित्रण मिलता है। उनकी कहानी ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष को प्रस्तुत करती है। "सोज़े वतन"(1907) उनकी प्रारंभिक कहानियों का संग्रह हैं ,जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों और भारतीय जनता के संघर्ष को दर्शाया है । "पूस की रात" जैसी कहानियां ब्रिटिश शासन की आर्थिक शोषण को उजागर करती हैं, जो किसानों के जीवन को बर्बाद कर रही थी।

2.ग्रामीण जीवन और सामाजिक असमानता

  • प्रेमचंद की कहानियों में ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और सामाजिक असमानताओं का यथार्थ चित्रण मिलता है।" गोदान" उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है, जिसमें होरी नामक किसान की कहानी के माध्यम से भारतीय ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों को उकेरा गया है। इस कहानी में जमींदारी प्रथा, गरीबी, और सामाजिक असमानताओं को प्रमुखता से दिखाया गया है।" कफन" जैसे कहानी में गरीबी और भूख की मार झेल रहे परिवार की करुण कहानी को दर्शाया गया है, जो ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों के परिणाम स्वरुप उत्पन्न हुई थी।

3.भारतीय संस्कृति और सामाजिक सुधार

  • प्रेमचंद की कहानियां भारतीय संस्कृति और सामाजिक सुधार की दिशा में भी महत्वपूर्ण संदेश देती हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में भारतीय समाज के परंपराओं, रीति - रिवाजो, और मान्यताओं का विश्लेषण किया है।" नमक का दरोगा" जैसी कहानियों में ईमानदारी, नैतिकता, और सत्य की महत्ता को दर्शाया गया है। इस कहानी में, मुंशी वंशीधर अपने कर्तव्य को निभाते हुए रिश्वत का विरोध करता है, जो भारतीय समाज में नैतिकता के प्रति प्रेमचंद की प्रतिबाध्दता को दर्शाता है।

4. स्त्री सशक्तिकरण 

  • प्रेमचंद की कहानियों में स्त्री सशक्तिकरण का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया गया है। उन्होंने अपनी कहानियों में नारी की स्थिति, उसकी समस्याओं, और उसकी संघर्ष को उकेरा है।" शतरंज के खिलाड़ी" जैसी कहानी में, उन्होंने रानी कोमलरानी के माध्यम से स्त्री के संघर्ष और उसकी स्वतंत्रता की चाह को प्रस्तुत किया है।" मंत्र "जैसी कहानियों में, स्री के संघर्ष और उसकी सामाजिक स्थिति को सुधारने के प्रयास को दर्शाया गया है।

5.सामाजिक और धार्मिक सद्भाव

  • प्रेमचंद की कहानियां सामाजिक और धार्मिक सद्भाव के संदेश को भी प्रमुखता से उठाती हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में हिंदू - मुस्लिम एकता, जातिवाद का विरोध, और सामाजिक समरसता का संदेश दिया है।" ईदगाह" जैसी कहानी में, हामिद का चरित्र हिंदू - मुस्लिम एकता और मानवीयता का प्रतीक है, जो प्रेमचंद के सामाजिक सद्भाव के दृष्टिकोण को दर्शाता है।

6.शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज

  • प्रेमचंद ने अपनी कहानियों के माध्यम से शोषण और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई है। उन्होंने अपनी रचनाओं में गरीबों, मजदूरों, और किसानों की आवाज को बुलंद किया है। "ठाकुर का कुआं" जैसी कहानी में, दलित समाज के प्रति अन्याय और शोषण को उजागर किया है, जो सामाजिक न्याय और असमानता के प्रति प्रेमचंद की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

7.शिक्षा और जागरूकता का महत्व

  • प्रेमचंद ने शिक्षा के महत्व को भी अपनी कहानियों में प्रमुखता से स्थान दिया है। "बड़े घर की बेटी" जैसी कहानियों में, उन्होंने न केवल नारी शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जीवन में शिक्षा की भूमिका को भी स्पष्ट किया है। उनकी कहानी इस बात पर जोर देती है कि शिक्षा समाज में परिवर्तन और सुधार का एक महत्वपूर्ण साधन है।

8.भ्रष्टाचार और नैतिकता

  • प्रेमचंद की कहानियों में भ्रष्टाचार और नैतिकता के मुद्दों को भी प्रमुखता से उठाया गया है।" नमक का दरोगा" जैसी कहानियां इस बात को स्पष्ट करती है कि नैतिकता और ईमानदारी किसी भी समाज की नींव होती है। प्रेमचंद की कहानियां पाठकों को नैतिकता, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है, जो राष्ट्रीय चेतना का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

9.संवेदनशील और मानवीय दृष्टिकोण 

  • प्रेमचंद की कहानियां संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण का भी उत्कृष्ट उदाहरण है । "बुढ़ी काकी" जैसी कहानियों में उन्होंने मानवीय संवेदनाओं, भावना, और रिश्तो की गहराई को उजागर किया है। उनकी कहानियां पाठकों को मानवीय मूल्य और संवेदनाओं के प्रति जागरुक करते हैं, जो समाज को एकजुट और सशक्त बनाने में सहायक होती हैं।

10. भारतीय समाज की यथार्थवादी चित्रण 

  • प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज का यथार्थवादी चित्रण करता है। उनकी कहानियां समाज के विभिन्न वर्गों, उनके  संघर्षों, और उनकी समस्याओं को सजीव में प्रस्तुत करती हैं।" गोदान" में होली का संघर्ष "कफन" में घीसू और माधव की गरीबी और "ठाकुर का कुआं" में दलित समाज की पीड़ा, ये सभी कहानियां भारतीय समाज की वास्तविकताओं को दर्शाती हैं। प्रेमचंद की यथार्थवादी  दृष्टि पाठकों को समाज की समस्याओं को समझने और उनके समाधान के प्रति जागरुक करती हैं।

समापन

  • प्रेमचंद की कहानियों में निहित राष्ट्रीय चेतना भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है। उनकी रचनाएं स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक असमानता, ग्रामीण जीवन, स्री सशक्तिकरण, शिक्षा, नैतिकता और मानवीयता के महत्वपूर्ण संदेश देती है। प्रेमचंद का साहित्य न केवल एक साहित्यिक धरोहर है, बल्कि  यह समाज सुधार और राष्ट्रीय चेतन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।

3 'मंदिर' और ' सद्गति' कहानी के आधार पर प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए

प्रेमचंद हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक है, जिन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं का गंभीर अध्ययन और चित्रण किया। उनकी रचनाओं में विशेष रूप से दलित जीवन की समस्याओं और उनकी सामाजिक स्थिति पर गहरा दृष्टिकोण मिलता है। उनकी कहानियां ' मंदिर' और ' सद्गति' दलित जीवन की पीड़ा, संघर्ष और समाज की निर्दयता को बहुत ही मार्मिकता तरीके से प्रस्तुत करती है। इन कहानियों के माध्यम से प्रेमचंद ने दलित जीवन संबंधी अपने विचारों को प्रकट किया है।

'मंदिर' कहानी:

  • 'मंदिर'कहानी में प्रेमचंद ने दलितों के धार्मिक और सामाजिक भेदभाव को उजागर किया है। इस कहानी का मुख्य पात्र जलधारी एक दलित है, जो मंदिर में प्रवेश करना चाहता है। लेकिन उसकी यह आकांक्षा उच्च जाति के लोगों को स्वीकार नहीं है। जलधारी का मंदिर में प्रवेश करने की इच्छा एक सामान्य धार्मिक आकांक्षा है, लेकिन समाज इसे उसकी जाति के कारण पाप समझता है। 
  • जलधारी की यह इच्छा उसे समाज के उच्च वर्गों के क्रोध और हिंसा का शिकार बनाती है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने यह दिखाया है कि धार्मिक स्थलों पर भी दलितों के साथ भेदभाव होता है। जलधारी के प्रति समाज का व्यवहार उसकी सामाजिक स्थिति को और भी नीचा दिखाने का प्रयास करता है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया कि समाज में व्याप्त जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने दिखाया कि धर्म के नाम पर भी दलितों के साथ अन्याय और अत्याचार किया जाता है, जो कि मानवता के खिलाफ है।

'सद्गति' 

  • सद्गति कहानी में प्रेमचंद ने दलितों के आर्थिक और सामाजिक शोषण को चित्रित किया है। इस कहानी का मुख्य पात्र दुखी एक दलित है, जो अपने काम के बदले उचित मजदूरी पाने की उम्मीद करता है। लेकिन समाज उसे केवल अपमान और दमन ही प्रदान करता है। दुखी का जीवन संघर्षों और अपमान से भरा हुआ है। वह अपनी बेटी की शादी के लिए पंडित से उचित समय निकालने की प्रार्थना करता है, लेकिन पंडित उसे काम करवाने के बाद ही समय देने का वादा करता है। दुखी काम करते-करते थक जाता हैअंततः उसकी मृत्यु हो जाती है ।
  • दुखी की मृत्यु के बाद भी समाज उसे आदर नहीं देता, बल्कि उसकी लाश को ठिकाने लगाने में भी लापरवाही बरतता है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने यह दिखाया है कि समाज में दलितों के प्रति कितनी गहरी उदासीनता और अमानवीयता  है। दुखी की मृत्यु के बाद भी समाज उसे इंसान नहीं मानता बल्कि उसे बोझ समझता है।

प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचार:

  • प्रेमचंद की कहानियों में दलित जीवन की वास्तविकता का सजीव चित्रण मिलता है ।उन्होंने समाज में व्याप्त जाति आधारित भेदभाव, शोषण, और अत्याचार को उजागर किया है। उनके अनुसार, दलितों का जीवन संघर्षों और पीड़ाओं से भरा होता है, और समाज उन्हें समानता का अधिकार नहीं देता।

  • प्रेमचंद का मानना था कि समाज में व्याप्त जाति प्रथा को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने दलितों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास किया और उनकी समस्याओं को साहित्य के माध्यम से जनमानस के सामने लाने का काम किया। उनकी कहानियां समाज के उन वर्गों को आईना दिखाती हैं जो दलितों के साथ अन्याय और भेदभाव करते हैं।
  • प्रेमचंद ने यह भी दिखाया कि दलितों के संघर्ष केवल आर्थिक या सामाजिक ही नहीं है, बल्कि मानसिक और भावात्मक भी है। वे समाज के द्वारा न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी प्रताड़ित होते हैं।
  • उनकी कहानियां समाज को यह संदेश देती है कि सभी मनुष्यों को समानता और सम्मान का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने दलितों की दुर्दशा को साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत कर समाज को जागृत करने का प्रयास किया। उनके साहित्य में समाज में दलितों के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • इस प्रकार, ' मंदिर' और 'सद्गति' कहानी प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती हैं ।उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से दलितों की पीड़ा संघर्ष और समाज की निर्दयता को उजागर किया और समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया है।उनकी रचनाएं आज भी समाज में प्रासंगिक है और सामाजिक न्याय के प्रति हमें जागरुक करती हैं।

निष्कर्ष

  • प्रेमचंद की कहानी ' मंदिर' और ' सद्गति' उनके दलित जीवन संबंधी विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है। उन्होंने दलितों की पीड़ा, संघर्ष, और समाज की निर्दयता को बहुत ही संवेदनशील और मार्मिक तरीके से चित्रित किया हैं ।उनकी रचनाएं हमें यह संदेश देती है कि समाज में सभी मनुष्य को समानता, न्याय, और सम्मान का अधिकार मिलना चाहिए। प्रेमचंद का साहित्य समाज में परिवर्तन लाने और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी कहानियां आज भी समाज में प्रासंगिक है और हमें सामाजिक न्याय के प्रति जागरुक करती हैं।

4.प्रेमचंद की कहानियों में अभिव्यक्त जाति उन्मूलन की अवधारणा का विवेचन कीजिए।

प्रेमचंद भारतीय साहित्य के महान कथाकरो में से एक हैं, जिनकी कहानियां समाज की विभिन्न समस्याओं और जाति संबंधी मुद्दों को उजाकर करती हैं। उनकी रचनाओं में जाति उन्मूलन की अवधारणा गहराई से प्रतिष्ठित है। उनकी कहानियां विभिन्न व्यक्तिगत और सामाजिक पहलुओं को समाहित करती हैं, जिसमें उनके उपन्यास ' गोदान' और कई लघु कथाएं शामिल हैं। प्रेमचंद की कहानियों में जाति उन्मूलन की अवधारणा को समझने के लिए उनकी विभिन्न कहानियों का विशेष अध्ययन करना उचित होगा। इसमें उनके विचार, उनकी कल्पना, और समाज के प्रति उनकी चिंताओं का समग्र विश्लेषण शामिल होता है।

1. उपन्यास 

  • 'गोदान' प्रेमचंद का उपन्यास 'गोदान' जाति और समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से छूता है। इस कहानी में प्रमुख पात्र परिखित समाज के नियमों और जाति व्यवस्था से आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय की मांग करते हैं। गोदान में धार्मिक और सामाजिक मुद्दों को उठाते हुए प्रेमचंद ने उसे समय की सामाजिक दुश्मनियों और विवादों को व्यक्त किया जब भारतीय समाज जटिल बदलाव के सामने था।

2. लघु कथाएं

  • प्रेमचंद की लघु कथाओं में भी जाति उन्मूलन के विभिन्न पहलू उजागर होते हैं।'ईदगाह' जैसी कहानियां समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद स्थापित करती हैं और जाति भेद को चुनौती देती हैं। इन कहानियों में उन्होंने सामाजिक न्याय, मानवीय संवाद और सामाजिक समस्याओं को समझाने का प्रयास किया।

3. सामाजिक पहलु

  • प्रेमचंद की कहानियों में जाति उन्मूलन की अवधारणा का एक और महत्वपूर्ण पहलू समाज के विभिन्न पहलुओं का उदाहरण है। उन्होंने व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जाति व्यवस्था की समीक्षा की और इसे खुले विचार के माध्यम से समझाने की कोशिश की। उनकी कहानियां ब्राह्मण, शूद्र, वैश्य, और क्षत्रिय के बीच विविधता को दर्शाती हैं और समाज में समानता के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

4. समाज की परिस्थितियों का चित्रण

  • प्रेमचंद की कहानियों में समाज की विभिन्न परिस्थितियों का विस्तार पूर्ण चित्रण होता है। उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव भ्रांतियां और विचारों के माध्यम से समाज की समस्याओं को उजागर किया और इसे समाधान की दिशा में ले जाने की कोशिश की।

प्रेमचंद की कहानियों में जाति उन्मूलन की अवधारणा की विशेषताएं

  • प्रेमचंद की कहानियों में जाति उन्मूलन की अवधारणा को समझने के लिए उनके विभिन्न लेखनी शैली और कथाएं विशेष रूप से महत्वपूर्ण  हैं:

व्यक्तिगत परिचर्चा और सामाजिक संघर्ष

  • प्रेमचंद की कहानियों में व्यक्तिगत परिचर्चा के माध्यम से सामाजिक संघर्ष और विविधता का चित्रण किया गया है। उनकी कहानियों में प्रमुख पात्र अपने अनुभवों और दृष्टिकोण से जाति- संबंधी मुद्दों को समझने की कोशिश करते हैं। उन्होंने विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच आत्म समर्थन, समानता और समरसता की बात की है।
  • समाज के स्तर पर अध्ययन प्रेमचंद की कहानियों में समाज के विभिन्न स्तरों पर जाति - संबंधी मुद्दों का अध्ययन किया गया है। उन्होंने अपनी कहानियों में समाज के नीचे से ऊपर तक के लोगों की जीवनी और उनके संघर्षों को प्रस्तुत किया है। इससे सामाजिक न्याय, असमानता, और समाज की संरचना के प्रति उनकी गहरी समझ उजागर होती है।

सामाजिक न्याय और न्याय 

  • प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक न्याय और न्याय की मांग करने की भावना गहराई से व्यक्त होती है। उनकी कहानियों में प्रमुख पात्र अक्सर समाज के अधिकार और उनकी प्रतिक्रिया पर विचार करते हैं जो जाति- व्यवस्था और समाज के विभिन्न असमानताओं के खिलाफ उठाई जाती है।

निष्कर्ष

  • प्रेमचंद की कहानियों में जाति उन्मूलन की अवधारणा को समझने का यह अभ्यास हमें उनके साहित्यिक योगदान की महत्वपूर्ण विशेषताओं को समझने में मदद करता है। उनकी कहानियां न केवल उसे समय के सामाजिक संदर्भ को उजागर करती हैं, बल्कि आज के समय में भी समाज के समस्याओं को समझने और सुलझाने के लिए हमें प्रेरित करती हैं।

5.प्रेमचंद की कहानियों के शिल्प - पक्ष पर विचार कीजिए। 

  • प्रेमचंद, जिनका वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव है, भारतीय साहित्य के महान कथाकारों में से एक हैं। उनकी कहानियां सामाजिक, राजनीतिक,  धार्मिक और मानवीय मुद्दों को छूने वाली है, जिनमें वे शिल्प - पक्ष के माध्यम से अपने पाठकों के दिलों और विचारों में गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
  • प्रेमचंद की कहानियों में शिल्प - पक्ष का प्रमुख रूप सामाजिक चित्रण है ।उनकी लेखनी ने उस समय की सामाजिक वास्तविकता को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया, जिससे पाठकों को समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता संवेदनशीलता और समझ बढी । उनकी कहानियां गांव के गरीबी, उनके सामाजिक और आर्थिक विभाजन, और व्यक्ति के मानवीय अनुभवों को बहुत ही सरलता और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती हैं।
  • प्रेमचंद की कहानियों का शिल्प - पक्ष उनके पाठकों को विभिन्न दृष्टिकोण से समस्याओं को देखने की क्षमता प्रदान करता है। उनकी कहानियों में सामाजिक विवाद, व्यक्ति के आत्मविश्वास की कमजोरी, और न्याय की कमी जैसे विषयों को स्पष्टता से उजागर उजागर किया है। उनकी कहानियों में वास्तविकता और इंसानी भावनाओं का पर्यायवाचीता महसूस होता है, जिससे पाठकों को उन्हें समझने और अपने जीवन में उनके सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है।

  • उनकी कहानियों का शिल्प - पक्ष इसी संदर्भ में उनके भाषावाद, कथावाद, और पात्रों के विकास के रूप में भी परिलक्षित होता है। प्रेमचंद के लेखन में भाषा की उस विशेषता को महसूस किया जा सकता है जो पाठक के मन और भावनाओं को गहराई से छुती है ।उनकी कहानियों में वाचक को सीधे नहीं, बल्कि सूक्ष्मता से उस विचार के निर्माण में शामिल किया जाता है जो उनकी लेखनी का विशेषता है।
  • इस प्रकार, प्रेमचंद की कहानियों में शिल्प - पक्ष का महत्वपूर्ण भूमिका है जो उनके लेखन को एक उच्च स्तर पर स्थापित करता है। उनकी कहानियां समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत करती हैं, जिसे उन्होंने अपनी खास शैली और शिल्प - पक्ष के माध्यम से व्याख्यात किया। इसलिए, उनकी कहानियों का यह शिल्प - पक्ष उनके लेखन को अद्वितीय बनाता है और उनके उन्हें भारतीय साहित्य के एक अग्रणी लेखक के रूप में स्थापित करता है।
  • प्रेमचंद की कहानियों में शिल्प - पक्ष का और एक महत्वपूर्ण पहलू उनके पत्रों का विकास है। उनकी कहानियों में पात्र विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो उनकी कहानियों को वास्तविकता से भर देता है। उन्होंने अपनी कहानियों में विभिन्न पात्रों के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया है। उनके पत्रों की भूमिका और उनके व्यक्तिगत की समझ उनकी कहानियों को गहराई और सांस्कृतिक  समृद्धता प्रदान करती है।
  • प्रेमचंद की कहानियों में आम जनता के पात्रों को मुख्यतः प्रदान किया गया है, जिनके माध्यम से वे समाज के न्याय और अन्याय की धारा स्पष्ट करते हैं ।उनकी कहानियों में गांव के गरीब, किसान, श्रमिक, व्यापारी आदि को उन्होंने उनके अभिशाप और समस्याओ के साथ दिखाया है, जो उनके समय की सामाजिक वास्तविकता को अच्छे से व्यक्त करता है। उनके पत्रों की विशेषता उनके माध्यम से जीवंत होती है, जो पाठकों को उनसे संबंधित करने और उनकी स्थिति को समझने में मदद करती है। इसके अतिरिक्त, प्रेमचंद की कहानियों में विभिन्न सामाजिक और धार्मिक मुद्दे भी उठाए गए हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में धर्म, धार्मिक भेदभाव, आधुनिकता और परंपरा के मुद्दे को बहुत ही उचितता से व्यक्त किया है। उनकी कहानियां धार्मिक समाज की समस्याओं को उजागर करती हैं, जिससे पाठकों को उनकी अवधारणाओ और सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है।
  • समाप्ति रूप में, प्रेमचंद की कहानियों में शिल्प - पक्ष का व्यापक और महत्वपूर्ण भूमिका है जो उनके लेखन को साहित्यिक महाकाव्य के रूप में स्थापित करता है। उनकी कहानियां आज भी उत्तर भारतीय साहित्य के एक अनमोल धरोहर के रूप में मानी जाती हैं, जो समाज की समस्याओं को समझने और समाधान करने में मदद करती हैं।

6. प्रेमचंद की कहानी कला के मूल तत्वों को संक्षेप में समझाइए।


 प्रेमचंद की कहानी कला के मूल तत्वों को समझाने के लिए हमें उनकी कहानियों के मूल अंदाज और उनमें प्रकट होने वाले तत्वों का विश्लेषण करना होगा। प्रेमचंद की कहानियां अपनी सरलता, सामाजिक सत्यता, मानवता की प्रशंसा और विचारशीलता के लिए प्रसिद्ध है। उनके लेखन में कला के मूल तत्व प्राथमिकता से प्रकट होते हैं।

1. सरलता और सीधापन

  • प्रेमचंद की कहानियां अपनी सरलता और सीधापन के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपने लेखन में साधारण भाषा का प्रयोग किया जो कि आम जनता तक आसानी से पहुंचती हैं। उनकी कहानियों में कभी भी भ्रम और प्रतिकूलता का स्थान  नहीं होता है, जिससे पाठक उन्हें समझने में सक्षम होते हैं। उनकी सरल भाषा और सीधी कहानी- रचना उनकी कला के इस मूल तत्व की प्रमुखता होती हैं।

2. सामाजिक सत्यता

  • प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में सामाजिक सत्यता को बड़े ही साहस से प्रस्तुत किया। उनके लेखन में समाज की वास्तविकता, समस्याओं का समीक्षात्मक प्रस्तुतीकरण और उनके समाधान पर ध्यान केंद्रित होता है। उनकी कहानियों में गांव, शहर, अधिकारी, गरीबी, सामाजिक विवाद, और राजनीतिक प्रतिकूलताओं का चित्रण होता है जो हमारे समाज की सच्चाई को प्रकट करता है। उनका लेखन गहरी और संवेदनशील समाजवादी दृष्टिकोण को प्रतिष्ठित करता है।

2. मानवता की प्रशंसा

  • प्रेमचंद की कहानियों में मानवता की प्रशंसा एक महत्वपूर्ण तत्व है। उनके लेखन में हमेशा मानवता के गुणों की महत्वाकांक्षा होती है। उनकी कहानियों में समाज के विभिन्न पात्रों के द्वारा मानवता के मूल्यों को प्रकट किया गया है। उन्होंने अपने पत्रों के माध्यम से दिखाया कि जीवन की समस्याओं का समाधान केवल हमारे मानवता और समझदारी में ही है।

4. विचारशीलता 

  • प्रेमचंद की कहानियों में विचारशीलता एक महत्वपूर्ण गुण है। उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज के विभिन्न मुद्दों पर विचार किया और उन्हें सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अपने लेखन का उपयोग  किया। उनकी कहानियों में राष्ट्रीयता, धर्म, राजनीति और सामाजिक समस्याओं पर गहरा विचार किया गया है ।उन्होंने अपने पाठकों को उन समस्याओं के विशेष संदर्भ में सोचने के लिए प्रेरित किया।
  • इस प्रकार, प्रेमचंद की कहानियों में सरलता, सामाजिक सत्यता, मानवता की प्रशंसा और विचारशीलता ये चार मूल तत्व है जो उनके लेखन को  अद्वितीय बनाते हैं। उनकी कहानियां आज भी उपन्यास, गजल और नाटकों की तरह गणना की जाती है, और उनका काव्य और कला में महत्वपूर्ण स्थान है।

समाप्ति

  • इस प्रकार, प्रेमचंद की कहानियों में सरलता, सामाजिक सत्यता ,मानवता की प्रशंसा और विचारशीलता ये चार मूल तत्व है जो उनके लेखन को अद्वितीय बनाते हैं। उनकी कहानियां समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझती हैं और पाठकों को सोचने और समझने के लिए प्रेरित करती हैं ।उनका लेखन आज भी हमें समाज की सच्चाई और मानवता के मूल्यों के प्रति जागरूक करता है।


Comments

Popular posts from this blog

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें shaikshik takniki ka Arth tatha paribhasha

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें   शैक्षिक तकनीकी का अर्थ   शैक्षिक तकनीकी कोई शिक्षण- पद्धति नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जिसके आधार पर शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों की अधिकतम प्राप्ति के लिए विभिन्न व्यूह रचनाओं का विकास किया जा सकता है। अब शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित हो जाते हैं तो उनको प्राप्त करने के लिए शैक्षिक तकनीकी अस्तित्व में आती है। सामान्य भाषा में ' तकनीकी ' शब्द का अर्थ ' शिल्प ' अथवा ' कला विज्ञान ' से है। तकनीकी शब्द को ग्रीक भाषा में ' टेक्निकोज ' शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है ' एक कला ' तकनीकी का संबंध कौशल तथा दक्षता से है।। कुछ वर्ष पहले शैक्षिक तकनीकी को दृश्य- श्रव्य सामग्री से और कक्षा में अध्यापन सामग्री से संबंधित माना जाता था, लेकिन शैक्षिक तकनीकी और श्रव्य - दृश्य सामग्री एक जैसे नहीं है। शैक्षिक तकनीकी की परिभाषायें शैक्षिक तकनीकी के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए विभिन्न परिभाषायें दी गई है जिनका विवरण अग्र प्रकार है- एस.एस. कुलकर्णी के अनुसार, " शैक्षिक तकनीकी को शिक्षण प्रक्रिया में प्...

बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष के उद्देश्य Bloom Ke Gyanatmak Bhavatmak Paksh

 बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक पक्ष  इस पक्ष का इस पक्ष का विकास प्रोफेसर ब्लूम ने 1956 में किया। इसका संबंध प्रमुख रूप से सूचनाओं, ज्ञान तथा तथ्यों का ज्ञान एवं विषय वस्तु के विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन आदि बौद्धिक क्रियाओ से होता है। बौद्धिक प्रक्रियाएं बालक को अधिक अनुभव प्रदान कर अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की ओर ले जाती है। इस पक्ष के उपवर्गीकरण इस प्रकार है _ ज्ञान  बोध  प्रयोग  विश्लेषण संश्लेषण  मूल्यांकन ज्ञानात्मक उद्देश्य इस बात पर बल देते हैं कि विद्यार्थियों को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि ज्ञानात्मक पक्ष से संबंधित व्यवहार में प्रत्यय स्मरण तथा पहचान की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया क्रियाशील रहती है इसलिए स्कूल में पढ़ाई जाने वाले विभिन्न विषयों के द्वारा इस पक्ष को अधिक से अधिक विकसित करने का प्रयास किया जाता है इस पक्ष से संबंधित विभिन्न उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है- १ ज्ञान - ज्ञान उद्देश्य का संबंध शब्दों, तथ्यों, नियमों, सूचनाओं एवं सिद्धांतों की सहायता से विद्यार्थियों की प्रत्ययस्मरण तथा पहचान संबंधी क...

बहु इंद्रिय अनुदेशन का अर्थ व परिभाषा Bahu indriya anudeshan ka Arth aur paribhasha

बहु इंद्रिय अनुदेशन का अर्थ 'बहु इंद्रिय' अनुदेशन शिक्षा में नया प्रत्यय है, इसका विकास एडगर्डेल ने किया। यह इसकी शब्दावली से ही प्रकट होता है कि वह अनुदेशन जिसमें दो से अधिक इंद्रियां क्रियाशील हो, अनुबंधन शिक्षण का ही एक प्रारूप है। शिक्षण में भी अनुदेशन निहित होता है। शिक्षक की क्रिया अनुदेशन से आरंभ होती है। अनुदेशन से ज्ञान के उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। अनुदेशन की परिभाषा :- अनुदेशन से सीखने की परिस्थितियों उत्पन्न की जाती हैं जिससे छात्र अनुभव करते हैं और उनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है। "अनुदेशन क्रिया तथा भाव की एक प्रणाली है जिससे अधिगम होता है" यदि अधिगम को समझ लिया जाए तब अनुदेशन अधिक स्पष्ट हो जाता है । क्रियाओं तथा अनुभवों से जो व्यवहार परिवर्तन होता है उसे अधिगम कहते हैं। यदि व्यवहार परिवर्तन संवेगों, अभिप्रेरणा या परिपक्वता से होता है तो उसे अधिगम नहीं कहते हैं। अनुदेशन का लक्ष्य अधिगम परिस्थितियों उत्पन्न करना है जिससे छात्रों को कुछ करना हो तथा कुछ अनुभव हो जिसका परिणाम अधिगम होता है। एडगार्डेल ने आंतरिक अनुभव का उपयोग बहूइंद्रिय अनुदे...