लड़की जिसकी मैंने हत्या की कहानी का सारांश
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लड़की जिसकी मैं हत्या की कहानी |
सुप्रसिद्ध कन्नड़ कथाकार आनंद जी की यह कहानी है, जो भारतीय समाज को विवेकशील और सहृदयता से देखने की एक प्रभावशाली कोशिश है। यह कहानी फ्लैशबैक शैली में लिखी गई है इस कहानी का नैरेटर स्वयं लेखक है. शिला शिल्पों में नेरेटर की गहरी दिलचस्पी है, उन्हीं का अध्ययन करने के लिए वह सन 1931 में मैसूर की यात्रा करने के लिए जाते हैं।
घूमते - घूमते नागवल्ली नाम के गांव में पहुंचते हैं। वहां वह गांव के प्रभावशाली व्यक्ति श्री करियप्पा के यहां ठहरते हैं। करिअप्पा बड़े ही अच्छे मन से उनका स्वागत करते हैं जिसका बखान खुद लेखक अपने शब्दों में करते है।
लेखक सादगी वाला व्यक्ति है वह अपनी पत्नी से इतना प्यार करते हैं कि वह अपनी यात्रा का पूरा विवरण अपनी पत्नी लक्ष्मी को पत्र के माध्यम से भेजते हैं। यह कहानी उसे समय की है जब यात्राएं बैलगाड़ी से की जाती थी और आज की तरह ईमेल एसएमएस या फोन और मोबाइल की सुविधा नहीं थी. उस समय कबूतर, तोता और चिड़िया ही संदेश लाने ले जाने का काम करते थे.
लेखक अपनी पत्नी को पत्र लिखता है और उसे भेजने के लिए बाहर निकलता है और लेटर बॉक्स को तलाशता है. तभी उसके कमरे के बाहर एक लड़की एक खंभे के सहारे खड़ी मिलती है जो लेखक को देखकर एक मधुर मुस्कान देती है जो बहुत ही लुभावनी होती है। लेखक द्वारा लेटर बॉक्स का पता पूछे जाने पर वह लड़की लेखक से कहती है कि आप तकलीफ न करे मालिक मैं खुद ही पत्र लेटरबॉक्स में डाल आऊंगी। लेखक भली लड़की समझकर उसकी बात मन लेता है और वह लड़की पत्र लेटरबॉक्स में डाल आती है। लेखक उसके इस व्यवहार से बहुत प्रभावित होता है और उसका परिचय लेने के लिए उत्सुक होता है।
लेखक के लड़की के साथ कुछ वार्तालाप के बाद मालूम चलता है कि उसका का नाम चेन्नी अथवा चेन्नमा है। आगे की पूरी कहानी लेखक और चेन्नमा के इर्द गिर्द घूमती रहती है. अब लेखक अपनी किसी भी समस्या हेतु चेन्नम्मा से समाधान मांगता है और चेन्नमा बहुत ही खुशमिजाज ढंग से लेखक की मदद करती है। चेन्नम्मा का यह व्यवहार लेखक को और उत्सुक बनाता है और वह चेन्नमा के बारे में बहुत कुछ जानने के लिए इच्छुक हो जाता है।
एक दिन लेखक चेन्नमा से बगीचे का रास्ता पूछता है चेन्नमा लेखक को बगीचे का रास्ता बताती बताती खुद भी लेखक के पीछे-पीछे पानी भरने के बहाने आ जाती है और बगीचे के कुएं से पानी भर के लेखक से पानी से भरे घड़े को उसकी कमर पर रखने की गुजारिश करती है लेखक बड़ी ही मधुरता से उसके इस अनुरोध को स्वीकार करता है। हवा के झोंके से चेन्नमा के आंचल का पल्लू सरक जाता है जिसे वह बिना लज्जा के गिरने देती है जो लेखक को थोड़ा अजीब लगता है फिर लेखक अपना मुंह दूसरी ओर फेर लेता है और चेनम्मा वहां से चली जाती है।
एक दिन लेखक बिस्तर पर सोने के लिए जा रहा होता है तभी चेनम्मा अपने हाथ में भोजन की थाली लिए कमरे में आती है और लेखक से कहती है कि मलिक आज आपने भोजन नहीं किया कर लीजिए. यह कहकर वहां से वापस चली जाती है। लेखक भोजन करके लेट जाता है परंतु नींद न आने की वजह से वह अपनी पत्नी लक्ष्मी के लिए पत्र लिखने लग जाता है. रात काफी बीत जाती है तभी उसके दरवाजे पर दस्तक होती है जिसे लेखक अनसुना कर देता है दरवाजे पर पुनः दस्तक होने पर दरवाजा खोलने पर वह देखता है कि चेन्नमा दरवाजे पर खड़ी है और जैसे ही गेट खुलता है तो चेन्नमा अंदर आती है और लेखक बिस्तर की ओर बढ़ता है. चेन्नमा दरवाजे की चटकनी अंदर से बंद करके लेखक की ओर आती है.
यह सब देखकर लेखक के पांव तले की जमीन खिसक जाती है और वह समझ नहीं पता कि करें तो क्या करे. लेखक चेन्नमा से कहता है कि तुम चटकनी क्यों बंद कर रही हो. तुम्हारे माता-पिता को पता चल गया कि तुम इस वक्त मेरे कमरे में हो तो वो क्या कहेंगे. इस पर चेन्नमा एक मधुर सी स्माइल देती है और लेखक के पास आकर बैठ जाती है और लेखक को शारीरिक संबंध बनाने हेतु प्रोत्साहित करती है
यह सब देखकर लेखक सारी कहानी समझ जाता है कि आखिर चेनम्मा का वास्तविक चरित्र क्या है और अब वह पुरानी सभी घटनाओं को चेन्नमा के चरित्र से जोड़ने में सक्षम हो पता है कि पिछली हर एक घटना में चेन्नम्मा की अपनी एक प्लानिंग थी जैसे लेखक के कमरे के सामने खड़े रहना, चेन्नमा कि मधुर मुस्कान के साथ लेखक की हर सहायता करना, लेखक के पीछे-पीछे बगीचे में आना और कुएं पर आंचल से पल्लू सरक जाने पर बिना लज्जा के उसको यूं ही पड़े रहने देना इत्यादि
लेखक चेन्नम्मा से पूछता है कि यह सब तुम क्या कर रही हो तो चेन्नमा मधुर मुस्कान के साथ जवाब देती है कि आप जैसे कुलीन लोगों की सेवा करना ही मेरा धर्म है आप परेशान मत हों आप जो करना चाहें कर सकते है आपकी सेवा करना मेरा धर्म है तभी लेखक कहता है कि नहीं यह सब गलत है और तुम्हें यह सब नहीं करना चाहिए. चेन्नम्मा कहती है कि इसमें गलत क्या है आपकी सेवा करना ही तो मेरा धर्म है और यह सब करके मैं अपना धर्म निभाना चाहती हूं. इस तरह लेखक और चेनम्मा में लंबा संवाद होता है जिसमें लेखक मना करता है तो चेन्नमा बार बार अपना धर्म का हवाला देकर लेखक को काम के लिए प्रेरित करती है.
जब लेखक बार बार प्रश्न करता है और पूछता है कि आखिर तुम यह क्यों और किसके लिए कर रही हो तक जाकर चेनम्मा जवाब देती है कि वह एक बसवीं है। लेखक समझा कि वह एक वैश्या है. लेखक ने चेन्नमा से पूछा क्या यह वेश्यावृत्ति है. इस पर चेन्नमा बहुत ही अपमानित महसूस करती और उसने कहा मलिक आगे से उसे वैश्या न कहें क्योंकि मैं वैश्या नहीं हूं वो कहती है कि वैश्या तो पैसे के लिए काम करती है. हमारा तो आप जैसे लोगों की सेवा करना ही धर्म है हमारा पैसे से कोई वास्ता नहीं है.
लेखक का डर अब कम होता जाता है और वह चेन्नमा से पूछता है कि यह बसवीं क्या होती है? तभी चेन्नमा बताती है कि आज से कुछ साल पहले मैं बीमार पड़ी थी जिसके लिए मेरे माता-पिता ने ईश्वर से मन्नत मांगी थी कि यदि मैं सही हो जाऊं तो वे मुझे बसवीं बनाकार ईश्वर के फरमान पर छोड़ देंगे और जीवन भर अविवाहित रहकर आप जैसे कुलीन लोगों की सेवा करते रहूंगी और इसी परंपरा के तहत मैं बसवीं बनी हूं इसलिए मालिक आप किसी तरह का संकोच न करें और मुझे अपना धर्म निभाने दें.
लेखक असमंजस की स्थिति में है कि आखिर यह कौन सी परंपरा है जिसमें माता-पिता आपसे यह कुकर्म करवा रहे हैं लेखक कहता है कि एक स्त्री के लिए उसका मान ही सब कुछ है और अगर किसी स्त्री के पास उसका मान ही संरक्षित नहीं है तो वह नरक से भी बदतर है अतः तुम ऐसा काम मत करो क्योंकि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वही तुम्हारा मान है.
बहुत देर तक समझाने के बाद जाकर चेन्नम्मा को समझ में आया कि जो कार्य को वह अब तक करती आ रही है वह एक घिनौना कार्य है जिसे ईश्वर के नाम पर करवाया जा रहा है और तब वह बहुत रोती है कि वह अब तक कितना घिनौना कार्य कर रही थे. लेखक ने उसे सांत्वना दी और आगे से उसे इस कार्य में भागना न लेने हेतु प्रेरित किया। उसके बाद चेन्नम्मा वहां से चली गई और लेखक एक तसल्ली के साथ यह सोचते हुए सो गया कि उसने चेन्नमा को नरक रूपी जीवन से बचा लिया.
सुबह जब लेखक की नींद खुलती है और वह कमरे से बाहर आता है तो देखता है कि करियप्पा विलाप कर रहा है. थोड़ी देर बाद मालूम चलता है कि उसकी बेटी चेन्नमा ने बगीचे के कुएं में कूदकर जान दे दी है. लेखक की सांसे थम सी जाती है उसके समझ में नहीं आता कि वह अब क्या कहे.
इसके बाद कहानी में लेखक का पछतावा सामने आता है और वह मन ही मन सोचता है कि चेन्नमा ने खुदकुशी नहीं की बल्कि उसकी हत्या हुई है और वह हत्या किसी और ने नहीं बल्कि लेखक ने खुद की है. आगे वह मन ही मन सोचता है कि अगर उसने चेन्नमा को उसके कार्य के ऊपर इतना ज्ञान न दिया होता तो शायद वह आज जीवित होती. बेशक वह गलत कार्य में सलंग्न रहती परंतु उसकी जान न जाती. लेखक के यह सोचते सोचते कहानी खत्म हो जाती है कि उसने ये क्या किया; अगर वो चेन्नमा को उसके कार्य की सच्चाई न बताता तो वह जीवन भर मरती रहती और दूसरा ये कि सच्चाई बताई तो उसने शर्म के मरे खुदकुशी कर ली.
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