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मनोविज्ञान का शिक्षा पर प्रभाव Manovigyaan ka Shiksha Par Prabhaw

मनोविज्ञान का शिक्षा पर प्रभाव 

Manovigyaan ka Shiksha Par Prabhaw

शिक्षा का उद्देश्य मानव की क्षमता और योग्यता का विकास करना है। मनोविज्ञान का लक्ष्य मानव के व्यवहारों का अध्ययन करना है। मानव की योग्यताओं का विकास तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि उसके व्यवहारों का पूरी तरह से ज्ञान प्राप्त न कर लिया जाए। वास्तव में मनोविज्ञान ही शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता पहुंचाता है। मनोविज्ञान ने शिक्षा के सिद्धांत तथा प्रयोग में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। मनोविज्ञान हमें यह दर्शाता है कि बालक की शिक्षा कब, कैसे तथा किस अवस्था में प्रारंभ की जानी चाहिए। शिक्षा का स्वरूप, सीखने की सर्वश्रेष्ठ विधि व चरित्र का सर्वोत्तम विकास आदि बातों का ज्ञान मनोविज्ञान ही हमें देता है। शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान ने बहुत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं जिनका विवरण इस प्रकार है

बाल केंद्रित शिक्षा

  • प्राचीन काल में शिक्षा का केंद्र अध्यापक था। बालक का स्थान द्वितीय था। आज शिक्षा बाल केंद्रित है प्रत्येक बालक की तरफ अलग से ध्यान दिया जाता है।

शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक

  • शिक्षा के उद्देश्यों को मनोविज्ञान की सहायता से ही प्राप्त किया जा सकता है। मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षक को बालक के विचारों, मनोवृत्तियों व मनोभावों का पता चलता है, साथ ही वह बालकों में इच्छित परिवर्तन लाता है। स्किनर के अनुसार, "शिक्षा मनोविज्ञान आजकल शिक्षक के जीवन को ज्ञान से समृद्ध कर व उसकी शिक्षण विधि को उन्नत बनाकर उसे उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता पहुंचाता है।

व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर बल

  • बालक में व्यक्तिगत विभिन्नताये होती हैं। व्यावहारिक मनोविज्ञान के विकास से यह स्पष्ट है कि विभिन्न व्यक्तियों में रुचि, बुद्धि, सामर्थ्य तथा योग्यताओं में अंतर होता है। सब बालकों को एक ही पैमाने से नहीं आंका जा सकता है। अतः आधुनिक विद्यालयों ने पिछड़े हुए, मंद, अपराधी, प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन व सुधार किए हैं।

शिक्षण विधियां में सुधार

  • सीखना एक जटिल क्रिया है। आज शिक्षक को सीखने की पूर्ण प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए। मनोवैज्ञानिक शिक्षण में बालकों की क्षमताओं, रुचि, प्रतियोगिताओं का पूरा पूरा ध्यान रखा जाता है। शिक्षक को अपने विषय ज्ञान के आधार पर नहीं, बल्कि बालक के मानसिक स्तर पर उसकी जरूरतों के अनुसार पढ़ाना चाहिए। मनोविज्ञान में सीखने की प्रक्रिया के बारे में अनुसंधान के द्वारा अनेक ऐसे नियम ज्ञात हुए हैं, जिनसे कम से कम समय में अधिक से अधिक अच्छा शिक्षण हो सकता है।

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