माध्यमिक शिक्षा मुदालियर आयोग 1952-53। माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा निर्धारित शिक्षा के उद्देश्य
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माध्यमिक शिक्षा मुदालियर आयोग 1952-53 madhyamik Shiksha mudaliar aayog |
- माध्यमिक शिक्षा मुदालियर आयोग 1952-53
- माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य
- व्यवसायिक कुशलता की उन्नति
- नेतृत्व का विकास
- जनतंत्रीय नागरिकता का विकास
इस लेख को पढ़ने के बाद आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम होंगे
- माध्यमिक शिक्षा आयोग अथवा मुदालियर आयोग 1952-53 का विस्तृत विवरण दीजिए। मुदालियर आयोग के अनुसार शिक्षा के क्या उद्देश्य है होने चाहिए।
- मुदालियर कमीशन मुदालियर आयोग के अनुसार शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए।
- मुदालियर आयोग के व्यवसायिक शिक्षा संबंधी चुनाव क्या है ?
माध्यमिक शिक्षा मुदालियर आयोग 1952-53 (Secondary Education Commission (Mudaliar Commission) 1952-53)
स्वतंत्र भारत में आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों में अत्यंत दुर्गति से परिवर्तन हो रहे थे। इन परिस्थितियों में समन्वय की भावना स्थापना करने के लिए माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन करने की आवश्यकता का अनुभव किया गया। इसलिए सन 1948 में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने भारत सरकार को एक आयोग नियुक्त करने का सुझाव दिया।
सन 1951 में उसने अपने सुझाव को यह कहकर पुनरावृत्ति की कि माध्यमिक शिक्षा एक मात्रा मार्ग है और उसे ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के समक्ष उच्च शिक्षा प्राप्त करने अथवा नौकरी खोजने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। अतः माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि विद्यार्थी अपनी अभिरुचि एवं आवश्यकताओं के अनुसार माध्यमिक शिक्षा से लाभान्वित हो सकें।
बोर्ड के सुझाव से संतुष्ट होकर भारत सरकार ने 23 सितंबर 1952 को मद्रास विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति की घोषणा की। अध्यक्ष के नाम पर आयोग को मदालियार आयोग भी कहा जाता है।
आयोग के जांच के विषय (Terms of reference of commission)
आयोग के शब्दों में आयोग के जांच के विषय थे:- भारत की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के स्तर की जांच करना एवं उनके विषय में रिपोर्ट देना और उसके पुनर्गठन एवं सुधार के संबंध में सुझाव प्रस्तुत करना।
माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Secondary Education)
आयोग ने भारत के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर माध्यमिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए हैं:-
१. व्यवसायिक कुशलता की उन्नति (Improvement of Vocational efficiency)
माध्यमिक शिक्षा का पहला उद्देश्य छात्रों में व्यवसायिक कुशलता की उन्नति करना होना चाहिए। अतः माध्यमिक शिक्षा में औद्योगिक एवं व्यवसायिक विषयों को स्थान दिया जाना चाहिए। इन विषयों की शिक्षा से छात्रों और देश दोनों का हित होगा। छात्र अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात किसी व्यवसाय को स्वतंत्र रूप से ग्रहण कर सकेंगे। अतः उन्हें नौकरी खोजने के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। देश को यह फायदा होगा कि उसे अपने विभिन्न उद्योगों तथा व्यवसाय के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति सरलता से मिल जाएंगे।
२. नेतृत्व का विकास (Development of leadership)
माध्यमिक शिक्षा का दूसरा उद्देश्य छात्रों में नेतृत्व ग्रहण करने की क्षमता का विकास करना होना चाहिए। अतः माध्यमिक शिक्षा का आयोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे छात्र सामाजिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्र में नेतृत्व का दायित्व ग्रहण कर सकें। प्रजातंत्र तभी सफल हो सकता है जब इन क्षेत्रों में नेतृत्व का दायित्व ग्रहण करने वाले व्यक्ति उपलब्ध हो।
३. जनतंत्रीय नागरिकता का विकास (Development of Democratic citizenship)
माध्यमिक शिक्षा का तीसरा उद्देश्य छात्रों में जनतंत्रीय की नागरिकता का विकास करना होना चाहिए अतः माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिए जिससे छात्र में अनुशासन, देशप्रेम, सहयोग सहिष्णुता और स्पष्ट विचार आदि गुणों का विकास हो। इन गुणों से संपन्न होकर छात्र इस देश के योग्य नागरिक बनेंगे तथा भारत में धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना में योगदान दे सकेंगे जो गणतंत्र का मुख्य उद्देश्य है।
४. व्यक्तित्व का विकास (Development of personality)
माध्यमिक शिक्षा का चौथा और अंतिम उद्देश्य छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना होना चाहिए। अतः माध्यमिक शिक्षा का संगठन इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे छात्रों का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक विकास के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत के महत्व को समझ सकें और उस की वृद्धि में योगदान दे सकें।
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