Skip to main content

शैक्षिक तकनीकी shaikshik takniki

 शैक्षिक तकनीकी : मौलिक अवधारणा, उद्देश्य और विशेषताएं


शैक्षिक तकनीकी की मौलिक अवधारणाएं

  • (१) शिक्षक का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षण तथा अधिगम के स्वरूपों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है। इस समन्वय में के आधार पर शिक्षण सिद्धांतों को प्रतिपादित किया जा सकता है।
  • (२) संप्रेषण माध्यमों और विधियों का नियोजन, कार्यान्वयन, विश्लेषण तथा मूल्यांकन सही ढंग से होना चाहिए अन्यथा उनके द्वारा समस्याओं के समाधान के साथ-साथ और समस्याओं के उत्पन्न होने का भय रहता है।
  • (३) संप्रेषण माध्यम को मनुष्य के विस्तार के रूप में जाना जाता है। इस संप्रेषण माध्यम में टेलीविजन, फिल्म, रेडियो, टेप रिकॉर्डर, कंप्यूटर, सेटेलाइट्स आदि सम्मिलित हैं। ये तत्व मनुष्य की जैवकीय प्रणाली से अलग हैं तथा मनुष्य अपने संप्रेषण के विस्तार के लिए प्रयोग करता है।
  • (४) मनुष्य संपूर्ण संप्रेषण विधि का एक अंग है तथा वह इस विधि का जैवकीय पक्ष है।


शैक्षिक तकनीकी के विस्तृत या सामान्य उद्देश्य 

  • (१) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण प्रतिमान विकसित किए जाने चाहिए।
  • (२) शिक्षण, वातावरण की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
  • (३) शिक्षा के उद्देश्यों तथा सामान्य शिक्षण विधियों को निर्धारित किया जाना चाहिए।
  • (४) जन - साधारण दलित तथा उपेक्षित वर्ग के लिए शिक्षा की सुविधायें प्रदान करने में सहायता की जानी चाहिए।
  • (५) शैक्षिक तकनीकी द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मानवीय तथा भौतिक साधनों और युक्तियां का पता लगाया जाना चाहिए।
  • (६) शिक्षा की संपूर्ण प्रणाली को सही ढंग से व्यवस्थित करने के लिए इसके नियोजन, क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन आदि की सुव्यवस्था शैक्षिक तकनीकी द्वारा की जानी चाहिए।
  • (७) शिक्षण प्रक्रिया में प्रयोग के लिए उपकरणों तथा अन्य साधनों का विकास किया जाना चाहिए।
  • (८) शैक्षिक तकनीकी द्वारा व्यक्तियों की आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं का पता लगाया जाना चाहिए।
  • (९) विज्ञान और कला आदि के पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए।


शैक्षिक तकनीकी के विशिष्ट उद्देश्य

  • (१) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों एवं शिक्षकों को उचित प्रतिपुष्टि प्रदान करना।
  • (२) अनुदेशात्मक सामग्री का विश्लेषण करना तथा उसे क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करना।
  • (३) शिक्षक प्रणाली के अन्य तत्वों जैसे- छात्र, शिक्षक, शिक्षण अधिगम सामग्री, अनुदेशन सामग्री तथा विधियों आदि की संभावित पारस्परिक अंतः क्रिया आदि की प्रकृति से परिचित होना।
  • (४) शैक्षिक उपलब्धियों तथा व्यवहार परिवर्तन के संबंध में शिक्षण के परिणामों का मूल्यांकन करना।
  • (५) उपलब्ध शिक्षण अधिगम सामग्री की जानकारी करना।
  • (६) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का निर्धारण करना, जिससे छात्रों की योग्यताओं विशेषताओं तथा शैक्षिक उपलब्धियां का पता लगाया जा सके। 
  • (७)शैक्षिक उद्देश्यों को लिखकर उन्हें व्याहारिक शब्दावली में लिखना ।
  • (८)कक्षा में शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों को पाने के लिए शिक्षण व्यूह रचनाओं का उचित चयन करना।

शैक्षिक तकनीकी की विशेषताएं

शैक्षिक तकनीकी की विशेषताएं निम्न प्रकार है-

  • (१) शिक्षक को वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ, स्पष्ट, सरल, रुचिकर बनाने के लिए शैक्षिक तकनीकी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
  • (२) यह वैज्ञानिक ज्ञान के प्रयोग पर आधारित है।
  • (३) इसमें मनोविज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, प्रणाली, कला, दृश्य श्रव्य सामग्री व मशीनों का प्रयोग सभी शामिल है।
  • (४) अभिक्रमित अध्ययन अंतः क्रिया विश्लेषण दृश्य श्रव्य सामग्री सूक्ष्म शिक्षण आदि नई खोजों के विकास में मुख्य हाथ हैं।
  • (५ यह छात्रों और शिक्षकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाता है।
  • (६) शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सीखने की परिस्थितियों की व्यवस्था या संगठन करना सम्मिलित है।
  • (७) यह निरंतर और विकासशील विधि है।
  • (८)इसमें सीखने के परिणामों की जांच के लिए मापन यंत्रों की व्यवस्था पर बल दिया गया है।
  • (९) वातावरण पर नियंत्रण करके सीखने को प्रोत्साहित करती है।
  • (१०) प्रभावशाली अधिगम के लिए विधियों और तकनीकों के विकास पर बल दिया गया है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि शैक्षिक तकनीकी शिक्षा का एक नया क्षेत्र है, जिसका संबंध लागत प्रक्रिया और उत्पादन से हैं। शैक्षिक तकनीकी का ज्ञान किसी भी अध्यापक को एक सफल अध्यापक बनने में निम्न प्रकार सहायता करता है - 

  • (१)उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय और भौतिक साधनों एवं युक्तियों का पता लगाया जा सकता है।
  • (२) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण प्रतिमान विकसित किया जा सकते हैं ।
  • (३)व्यक्तियों की आकांक्षाओं को अनुकूल बनाया जा सकता है।
  • (४) शिक्षण प्रक्रिया में प्रयोग के लिए उपकरणों तथा अन्य साधनों का विकास किया जा सकता है।
  • (५) शिक्षक वातावरण को अनुकूल बनाया जा सकता है।
  • (६) शिक्षा के उद्देश्यों तथा सामान्य शिक्षण विधियों को निर्धारित किया जा सकता है।
  • (७) विज्ञान तथा कला आदि के पाठ्यक्रम का निर्माण किया जा सकता है।
  • (८) शिक्षा की संपूर्ण प्रणाली को ठीक ढंग से व्यवस्थित करने के लिए उपयोगी है।
  • (९) जन - साधारण दलित व तथा उपेक्षित वर्ग के शिक्षा की सुविधाएं प्रदान करने में सहायता पहुंचाई जा सकती हैं।
  • (१०) इसके द्वारा नियोजन, क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन सुव्यवस्था की जा सकती है।


शैक्षिक तकनीकी और अध्यापक 

शैक्षिक तकनीकी का प्रभाव शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पर सर्वविदित हो चुका है। आधुनिक युग में सीखने के सिद्धांतों की अपेक्षा शिक्षण सिद्धांतों को विशेष महत्व दिया जाने लगा है, परंतु अभी तक शिक्षण सिद्धांतों का सही प्रतिपादन नहीं हो पाया। 

शिक्षण सिद्धांतों से पहले के स्तर अर्थात शिक्षण प्रतिमान के रूप में खोजें प्रकाश में आई है। यह खोजें सैक्षिक तकनीकी का ही परिणाम है। कक्षा में सफल शिक्षक के लिए शैक्षिक तकनीकी निम्नलिखित प्रकार से सहायक सिद्ध हो सकती है -

  • (१) शैक्षिक तकनीकी द्वारा प्रतिपादित विषयों से शैक्षिक व्यवस्थाओं की समस्याओं का समाधान करने में सहायता मिलती है जैसे प्रणाली विश्लेषण।
  • (२) शैक्षिक तकनीकी शिक्षण को वैज्ञानिक आधार पर प्रदान कर सकती है।
  • (३) शिक्षा की संरचना तथा उसकी प्रवृत्ति को समझने में सहायता करती है।
  • (४) शैक्षिक तकनीकी छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने में सहायता करती है।
  • (५) शिक्षण और सीखने के समय व्यक्तिगत विभिन्नताओं की समस्याओं का समाधान करने में शैक्षिक तकनीकी के अंतर्गत नई-नई विधियां बहुत सहायक है।
  • (६) सैक्षिक तकनीकी के कारण ही रेडियो, टेलीविजन, टेप रिकॉर्डर आदि मशीनों का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में संभव हो पाया है, जिससे दूर-दूर तक बैठे छात्र लाभ उठा रहे हैं।
  • (७) शैक्षिक तकनीकी की सहायता से शिक्षक अनेक प्रकार के नए अनुसंधान कर सकता है।
  • (८) शैक्षिक तकनीकी की सहायता से शिक्षक की कार्य कुशलता में वृद्धि संभव है।
  • (९) सैक्षिक तकनीकी से शिक्षण प्रक्रिया सरल हो जाती है।
  • (१०) साक्षी तकनीकी की सहायता से शिक्षक के समय की बचत होती है।
  • (११) शैक्षिक तकनीकी की सहायता से शिक्षक को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्राप्त हो सकेगा।
  • (१२) शैक्षिक तकनीकी की सहायता से शिक्षण में गुणात्मक उन्नति संभव है ।
  • (१३) शैक्षिक तकनीकी में उसे स्मृति स्तर से बोध स्तर तथा चिंतन स्तरों का प्रयोग होता है तथा उनके प्रयोग से छात्र मौलिकता की ओर बढ़ते हुए सृजनात्मक बनते हैं ।
  • (१४) सैक्षिक तकनीकी से अधिक से अधिक छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। जैसे अभिक्रमित अध्ययन, पत्राचार द्वारा अध्ययन।





Comments

Popular posts from this blog

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें shaikshik takniki ka Arth tatha paribhasha

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा परिभाषायें   शैक्षिक तकनीकी का अर्थ   शैक्षिक तकनीकी कोई शिक्षण- पद्धति नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जिसके आधार पर शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों की अधिकतम प्राप्ति के लिए विभिन्न व्यूह रचनाओं का विकास किया जा सकता है। अब शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित हो जाते हैं तो उनको प्राप्त करने के लिए शैक्षिक तकनीकी अस्तित्व में आती है। सामान्य भाषा में ' तकनीकी ' शब्द का अर्थ ' शिल्प ' अथवा ' कला विज्ञान ' से है। तकनीकी शब्द को ग्रीक भाषा में ' टेक्निकोज ' शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है ' एक कला ' तकनीकी का संबंध कौशल तथा दक्षता से है।। कुछ वर्ष पहले शैक्षिक तकनीकी को दृश्य- श्रव्य सामग्री से और कक्षा में अध्यापन सामग्री से संबंधित माना जाता था, लेकिन शैक्षिक तकनीकी और श्रव्य - दृश्य सामग्री एक जैसे नहीं है। शैक्षिक तकनीकी की परिभाषायें शैक्षिक तकनीकी के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए विभिन्न परिभाषायें दी गई है जिनका विवरण अग्र प्रकार है- एस.एस. कुलकर्णी के अनुसार, " शैक्षिक तकनीकी को शिक्षण प्रक्रिया में प्...

बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष के उद्देश्य Bloom Ke Gyanatmak Bhavatmak Paksh

 बी. एस. ब्लूम के ज्ञानात्मक पक्ष  इस पक्ष का इस पक्ष का विकास प्रोफेसर ब्लूम ने 1956 में किया। इसका संबंध प्रमुख रूप से सूचनाओं, ज्ञान तथा तथ्यों का ज्ञान एवं विषय वस्तु के विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन आदि बौद्धिक क्रियाओ से होता है। बौद्धिक प्रक्रियाएं बालक को अधिक अनुभव प्रदान कर अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की ओर ले जाती है। इस पक्ष के उपवर्गीकरण इस प्रकार है _ ज्ञान  बोध  प्रयोग  विश्लेषण संश्लेषण  मूल्यांकन ज्ञानात्मक उद्देश्य इस बात पर बल देते हैं कि विद्यार्थियों को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि ज्ञानात्मक पक्ष से संबंधित व्यवहार में प्रत्यय स्मरण तथा पहचान की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया क्रियाशील रहती है इसलिए स्कूल में पढ़ाई जाने वाले विभिन्न विषयों के द्वारा इस पक्ष को अधिक से अधिक विकसित करने का प्रयास किया जाता है इस पक्ष से संबंधित विभिन्न उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है- १ ज्ञान - ज्ञान उद्देश्य का संबंध शब्दों, तथ्यों, नियमों, सूचनाओं एवं सिद्धांतों की सहायता से विद्यार्थियों की प्रत्ययस्मरण तथा पहचान संबंधी क...

बहु इंद्रिय अनुदेशन का अर्थ व परिभाषा Bahu indriya anudeshan ka Arth aur paribhasha

बहु इंद्रिय अनुदेशन का अर्थ 'बहु इंद्रिय' अनुदेशन शिक्षा में नया प्रत्यय है, इसका विकास एडगर्डेल ने किया। यह इसकी शब्दावली से ही प्रकट होता है कि वह अनुदेशन जिसमें दो से अधिक इंद्रियां क्रियाशील हो, अनुबंधन शिक्षण का ही एक प्रारूप है। शिक्षण में भी अनुदेशन निहित होता है। शिक्षक की क्रिया अनुदेशन से आरंभ होती है। अनुदेशन से ज्ञान के उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। अनुदेशन की परिभाषा :- अनुदेशन से सीखने की परिस्थितियों उत्पन्न की जाती हैं जिससे छात्र अनुभव करते हैं और उनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है। "अनुदेशन क्रिया तथा भाव की एक प्रणाली है जिससे अधिगम होता है" यदि अधिगम को समझ लिया जाए तब अनुदेशन अधिक स्पष्ट हो जाता है । क्रियाओं तथा अनुभवों से जो व्यवहार परिवर्तन होता है उसे अधिगम कहते हैं। यदि व्यवहार परिवर्तन संवेगों, अभिप्रेरणा या परिपक्वता से होता है तो उसे अधिगम नहीं कहते हैं। अनुदेशन का लक्ष्य अधिगम परिस्थितियों उत्पन्न करना है जिससे छात्रों को कुछ करना हो तथा कुछ अनुभव हो जिसका परिणाम अधिगम होता है। एडगार्डेल ने आंतरिक अनुभव का उपयोग बहूइंद्रिय अनुदे...